संस्मरण(वह सड़क दुर्घटना)

      

                -----संस्मरण------

         वह सड़क दुर्घटना

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      इक्कीस वर्ष का हुष्ट पुष्ट कद काठी का सुंदर युवक था प्रिय गौरीश उसकी परास्नातक की प्रथम वर्ष थी वह मेधावी छात्र होने के साथ साथ दिल से भी बहुत नेक प्रतिभावान हर दिल अजीज था,उसके होठों पर सहज मुस्कान तैरती सी रहती थी,वह कुशाग्र बुद्धि और हँसमुख व्यतित्व का धनी था,

          वह पढ़ने में होशियार होने के साथ साथ सामाजिक परिवेश में भी जल्दी घुलने मिलने लगा था,वह सहज ही दोस्ताना अंदाज से बरवश अपनी ओर आकर्षित करने में गुण संपन्न था अब वह बड़ा जो हो रहा था,उसकी मित्र संख्या निरंतर बढ़ रही थी वह सदैव नेतृत्व करता अपनी मित्र मंडली का..

       उसके होठों पर एक सहज जादुई मुस्कान रहती थी या यूं कहें तैरती सी रहती यही विशेष गुण उसे अन्य लड़कों से विशेष बनाता वह सभी का चहेता और निरन्तर लक्ष्य की ओर बढ़ता दिख रहा था, वह सदा मन में देशसेवा की भावना लेकर प्रफुल्लित रहता उसका उद्देश्य सेना में जाना था वह अक्सर अपने पिता की वर्दी को चूमता और कभी कभी पहन कर देखता था,

        वह पिता की वर्दी में सैन्य अफसर लगता,वह इसे पाने के लिए अपना खूब पसीना बहा रहा था रोज सुबह ४.०० बजे उठकर कई किलोमीटर की दौड़ लगाता,कसरत करता वर्तमान जिम प्रणाली से कोसों दूर शुद्ध हवा के सानिध्य में और प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों में रमा रहता मगन रहता,ताकि वह सैन्य परीक्षा में सफल हो सके,एक बार आर्मी ओपेन भर्ती चल रही थी तब उसने उसमें पहला प्रतिभाग किया साथ ही उसने सैन्य भर्ती के कई चरण भी पास कर लिए,किंतु उस समय वह फौज के लिए नियत उम्र से कुछ माह कम होने की वजह से भर्ती ना हो सका,वह निराश हो घर लौट आया,लेकिन जज्बा कम न हुआ, 

           वह प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म डालता रहता लेकिन सैन्यसेवा उसकी प्रथम पंक्ति में विराजित विकल्प थी सैन्य सेवा के लिए लगातार प्रयत्नशील था बहुत श्रम कर रहा था,इस बार उसे सीमा सुरक्षा बल की नौकरी भा गयी उसका बुलावा पत्र आ चुका था शारीरिक दक्षता परीक्षा एव अन्य निर्धारित परीक्षाओं हेतु,

         उसे पूरा भरोसा था विश्वास था कि अबकी बार मैं वर्दी अवश्य पा जाऊँगा, फिर सीमा पर दुश्मन की आंखे नौच लूंगा,मेरा रक्त भारतभूमि की सौगात है इस तरह की प्रतिज्ञा वह करता और शरीर को बलवान बनाने हेतु खूब पसीना बहाता,

         अब गौरीश और अधिक जोश के साथ मेहनत करने लगा उसका भरोसा प्रगाढ़ होता जा रहा था साल था २०१७ तिथि १८ नवंबर उसकी परीक्षा शायद दिसम्बर के पहले सप्ताह में थी,अब उसे शहर से गाँव जाना था ताकि वह खुलकर ग्रामीण अंचल में शारीरिक दक्षता परीक्षा की तैयारी कर सके,

          

          वह शहर से गॉव चला गया लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था शायद उसका अंतिम समय उसे बुला रहा था,

वह गॉव से बाइक लेकर किसी लड़के के साथ दोस्त से मिलने निकल गया,वह सदैव सड़क नियमों का पालन करता था,उस दिन भी वह हेलमेट अपने साथ लेकर गया,नीली जीन्स और हल्के ग्रे शर्ट उस पर खूब फबती थी,उस दिन भी वह यही पहने हुआ था स्पोर्ट शूज और राजकुमार सा अंदाज, 

उसे अपने किसी दोस्त के यहां से लौटते समय शाम के लगभग ६.०० बज गए थे अंधेरा होता जा रहा था सर्दी में ठिठुरन शुरू होने लगी थी सर्द मौसम जबरन आक्रमण करने की तैयारी में था मानो घातक शिकारी अपने वार से निरीह मासूम जीव की प्राणवायु खींचना चाहता हो,

         

         वह शनिवार का दिन और अमावस की काली भयानक रात थी सन्नाटेदार और घोर काली अंधियारी रात,बाइक की गति कोई ६०/६२ रही होगी ये साथ चल रहे मित्र के नाम पर प्रश्नचिन्ह ममेरे भाई ने बताया,गौरीश हेलमेट को सिर पर ना लगाकर हाथ मे लटकाये हुए बाइक चला रहा था,सर्दी की फिक्र किसे थी युवाओं को अक्सर सर्द मौसम भाता है।

           समय की चाल जब वक्र होती है तब होनी अपना मायाजाल फैलाती है,जो लड़का सदैव सतर्क और जागरूक रहता था आज उसकी बुद्धि उसे काल के पास ले जाने की चाल चल रही थी,वह समझ ना सका जाल और मायाजाल का खेल अभी वह किशोर ही तो था किशोरावस्था की संगत प्रभाव और भृम भी लाती है,युवा अक्सर किशोरावस्था में ये भांप नहीं पाते हैं कि कौनसा मित्र मित्र है और कौनसा मित्र के नाम पर शत्रु कलंक!, 

         

         बाइक तेज गति में थी और वालक खुश, ये क्या गौरीश बोला देख सामने कुत्ता या गाय शायद आ रही है एक अस्पष्ठ परछाई सड़क के बीचोबीच आती दिखी,उसने कहा उसे बचाना होगा और स्वयं को भी ये उसके साथ चल रहे छद्मभेष धारी साथी ने बताया,

        

              वह परछाई उसका भृम था या काल की परछाई बकौल तथाकथित दोस्त ने बताया प्रिय गौरीश दयालू प्रव्रत्ति का सुशिक्षित वालक जो था,उसने अस्पष्ठ परछाई कुत्ते/गाय की जान बचाने के चक्कर में गाड़ी रोकनी चाही नियंत्रित करनी चाही,लेकिन ये क्या वहाँ ना कोई कुत्ता और ना कुछ, वह काल की माया थी या स्वयं काल रूप ही था।

       गाड़ी धड़ाम की तीव्र आबाज के साथ  पुलिया से टकरा गई,हेलमेट हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा और प्रिय गौरीश भी पुलिया पर सिर के बल टकराकर उछलता हुआ बाइक के किसी नुकीले भाग से टकरा गया , 

          वह नुकीला सिरा उसके सिर के पिछले भाग में समा गया,उसके सिर पर गहरा घाव हो गया रक्त बहने लगा,उसकी आबाज ना निकल सकी उसकी आबाज हमें फिर कभी सुनने को ना मिल सकी,दर्द का गुबार और भयंकर मानसिक यातना का उपहार वह सदा सदा के लिए हमें दे गया।

माँ भारती के लिए समर्पित रक्त सड़क पर बहा जा रहा था,मुझे भरोसा है उसने अपनी जान बचाने की भरपूर कोशिश की होगी,मुझे आबाज भी दी होगी वह हार मानने वाला न था वह धीर गम्भीर युवक था।

         वह संघर्ष अवश्य किया होगा अपनी जान बचाने हेतु ये मेरा दिल कहता है,लेकिन काल की गति बड़ी विस्मयकारी भयंकर है,आज दो पशुओं की प्राण रक्षा में शायद वे काल की प्रेरणा से भृम फैलाने आये थे, वह उन्हें बचाने के चक्कर में अपनी जान की बाजी लगा गया,

जान बचाने की जद्दोजहद में उसे कोई सहायक ना मिल सका समय रहते उपचार ना मिल सका ,

     कोई राहगीर उसे बचाने हेतु आगे ना आ सका देखने बालों की भीड़ समाज के नाम पर प्रश्नचिन्ह सिद्ध हुई,मानवता काले स्याह अध्याय में समा गई विदित होती थी,उसे सहायता मिलते मिलते विलम्ब हो चुका था शायद तभी प्रिय गौरीश जीवन की जंग हार गया और छोड़ गया अंतश में घनघोर डाह और अंतहीन वेदना का संसार,

समय लगभग शाम ६.२५ बजे का था वह युवा अत्यधिक रक्त श्राव हो जाने के कारण असमय काल के मुंह समा गया वह युवक।

           मैं उसे दोष नहीं दे सकता वह अनुशासित था लेकिन बुरे साथियों का संग कभी अधिक घातक हो जाता है मित्र का रूप भी समझने की बहुत ही जरूरत है क्या वह मित्र ही है या आपके शारीरिक शौष्ठव, ज्ञान,योग्यता को क्षीण करने हेतु कोई बहरूपिया कायर शत्रु! जो शायद समक्ष होकर तुम्हें परास्त ना कर सके 

      प्यारे सम्मानित पाठकों हमें मूल्यांकन करना होगा अपनी मित्रता का जो मित्र नशा जैसे अन्य व्यसनों की ओर ले जाना चाहे तो समझने का प्रयास करें वह मित्र कैसे हो सकता है वह तो तुम्हे मानसिक,शारिरिक दौर्बल्यता देने हेतु एक शत्रु सदृश ही है,प्रिय गौरीश अपने कुछ चालबाज,स्वार्थी दोस्तों की रंगत ना जान सका और असमय काल का ग्रास बन गया,

      अजीब संयोग बना उस महाकाल का उसकी मृत्यु बेला और जन्म बेला लगभग समान समय की गवाह बनीं,जो युवा सेना में जाकर देश के लिए अपने रक्त की एक एक बूंद माँ भारती को सौंपने के लिए कटिबद्ध था,आज उस बालक का रक्त सड़क पर व्यर्थ बह गया,काश उसने हेलमेट लगाया होता तो वह हमारे मध्य होता,या सभ्य समाज के नाम पर प्रश्नचिन्ह राहगीरों ने उसे समय रहते सहायता की होती और उसे प्रथम उपचार दिलवा दिया होता.तब वह हमारे बीच अवश्य होता,और राष्ट्र के काम आता।

     

         सम्मानित पाठकों जीवन का सबसे ज्यादा कठोर,दर्दनाक, वेदनापूर्ण समय वह होता है जब हम अपने किसी प्रिय को सड़क दुर्घटना में खो देते हैं सदा सदा के लिए वह वेंटीलेटर पर मृत शरीर मेरे मन मे सदा सदा के लिए वज्रपात सा प्रविश्ट है वाण की तरह गहरा घाव बनाता हुआ समाहित है जीवन पर्यंत जीवन का कोई सबसे अधिक दुःखद क्षण है तो वह अपने से छोटे को कंधा देना है उसकी विदाई का मंजर सीने के दो फांक कर देने वाला वेदनापूर्ण कालखण्ड होता है,मन अशान्त और अधीर है इस संस्मरण को लिखते हुए।


        ये कोई काल्पनिक पात्रों से सज्ज कथानक नहीं है ये मेरे प्रिय गौरीश की सड़क दुर्घटना में हुई मन को झकझोर देने वाली असमय मृत्यु की दर्द भरी दास्तां है।

मेरा उद्देश्य इस लेख को शब्द देने का औचित्य इतना मात्र था कि हम सभी वाहन चालक नियत गति एव नियत नियमो के तहत ही सड़क का उपयोग करें ताकि हमारे बीच से और कोई प्रिय गौरीश सड़क दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त ना हो जाये।

         मैं दृढ़ संकल्पित हूँ सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद हेतु सदैव सज्ज हूँ,

ताकि फिर किसी घर का प्रिय गौरीश असमय काल के गाल ना समा सके उसका रक्त सड़क पर ना बह जाए,


              लेकिन हमारे सभ्य समाज पर प्रश्नचिन्ह हैं ऐसी दुर्घटनाओं में सहयोग ना करना अधिकांश लोग अनदेखी करते हुए निकल जाते हैं उनका मानना होता है चलो समय खराब नहीं करना है आदि आदि बहाने बाजी…

सम्मानित पाठको

मुझे आपसे सिर्फ एक वादा (प्रॉमिस) चाहिए हम सड़क दुर्घटना में घायलों की अनदेखी ना करेगें उन्हें अतिशीघ्र उपचार उपलब्ध कराएंगे,एक नेक दिल नेक इंसान बनकर सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करेगें।हमारे इस प्रयास से किसी घर का चिराग असमय बुझने से बच सकता है….

अगर आप समर्थन करते हैं…...

आपका ऋणी रहूंगा सदा.

     मेरा मन इस भयंकर दुर्घटना (दर्दनाक पीडादायक) को शब्द देते हुए ह्रदय वेहद दर्द वेदना का अनुभव कर रहा है,लेकिन मुझे प्रिय गौरीश को सदा जीवित रखना है शब्दों में विचारों में और समाज के मध्य ये मेरा दृढ़ संकल्प है…..


शिव शंकर झा "शिव"

स्वत्रंत लेखक

व्यंग्यकार

शायर

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