कविता
।।लौट आ बचपन।।
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वह वचपन की बातें
वह अमावस की रातें
वह नदिया का घाट
वह वचपन का ठाट
वह मुह मांगी मुराद
माँ के भोजन का स्वाद,
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माँ जोहती घर आने की बाट
वह पिताजी की डांट,
वह मेवा मिष्ठान का पाग
वह गाय के दूध का झाग
वह लोनी वह मटठा
वह हंसी ठिठोली ठट्ठा
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वह अड़िया का स्वाद
वह मीठी मीठी याद,
वह गिल्ली डंडा का खेल
कबड्डी में ताकत का मेल
वह टेसू की लालहरी लाठी
वह रँग विरंगी सुनहरी परिपाटी
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वह भाड़ में आलू की भुनाई
मास्साब की जबरदस्त ठुकाई
मुरमुरा का खूब सारा चाव
वह चाय के डंडे का भाव
कुश्ती में धोबी पछाड़ का दाव,
गिल्ली डंडा खेल कबड्डी का चाव,
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ओस की बूंदों पर चलना
वह सुबह सुबह टहलना,
बम्बा की सुहानी बयार
वह अठन्नी से प्यार,
वह भल्ले का भाव
वह दावत का चाव
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वह गन्ने की मीठी मीठी राव
प्यार दुलार घना प्रेमभाव,
वह प्यार वह अठखेलियाँ
वह मेले की जलेबियाँ
वह साइकिल की सवारी
वह बचपन की यारी,
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वह अपनेपन की आस
वह रिश्तों की मिठास,
वह रेडियो के गाने
वह पिताजी के ताने
गांव के कीरतन की ललक
वह भाव वह राम रस झलक,
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वह ढोलक की थाप
वह राम नाम जाप,
वह अगहन की आंच
वह बोली में साँच
वह गुरु का आदर
वह खद्दर की चादर
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वह मड़इया की हवा
वह हकीम की दवा
वह सावन का धुंआ
वह गॉव का कुआं
वह साथी वह खेल
कबड्डी में ताकत का मेल,
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वह मेले की जलेबियां,
नहर में अटखेलियां
वह वहन भाई का अपना अपना राग,
वह बाजरा की रोटी सरसों का साग,
वह आंगन में बिछी खटिया
वह फूस की बनी टटिया
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वह अनगिनत स्मृतियों का संसार,
वह अनकहा अपनों का प्यार
याद याद बहुत याद आता है
खूब खूब खूब याद आता है
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शिव शंकर झा"शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
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