इश्क और अदाबत------------------------
इश्क और अदाबत खुल कर करो
दोस्त,
पीठ पीछे चुगलियों से दिल
जलता है,
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दिल के आईने में जहर की फसल रखते हैं
कुछ लोग,
लेकिन वे सामने आते ही मुस्करा के बात
करते हैं,
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मुझे तेरी अदाबत बद जुबानी से कोई शिकवा
नहीं हैं,
मुझे जंग और मोहब्बत खुलेआम करने
का शौक है,
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तू अपना लहू वेबजह की गलतफ़हमियों
में जाया ना कर,
सँभाल कर रख नसों में इसे वेशकीमती
चीज है,
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दरिया के किनारे यूँ उम्र भर तरसते
रहे,
चाह थी कभी तो मिलेंगे बांह भर
जिंदगी में,
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दो दिल इस कदर बेताब थे अंक
भरने को,
जमाने की आंखे सदा पहरा करती
रहीं,
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दो फूल भौरे की नजर पर चढ़
गए,
भौरा कुर्बान हो गया फूल से वेपनाह
इश्क कर,
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दो नाव की सवारी डुबाने के लिए
बनी है,
सोचना है तुम्हे इश्क और नफरत में
क्या चाहिए,
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आओ खुलकर दुश्मनी ही कर लें
दोस्त,
दिखाबे की दोस्ती खलती है अब
मुझे,
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हर रंग का स्वाद आजाद होकर लीजिए,
कुछ नया कुछ अलग एक बार कीजिये,
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कितने चेहरे पर चेहरे लगाने की फिराक
में हो,
बहरूपिया ही सही जानते हैं हम तुम नकाब
में हो,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
Kafi achcha hai ye
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