शेर(इश्क और अदाबत)

 


 

 

इश्क और अदाबत

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इश्क और अदाबत खुल कर करो

 दोस्त,

पीठ पीछे चुगलियों से दिल

 जलता है,

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दिल के आईने में जहर की फसल रखते हैं

कुछ लोग,

लेकिन वे सामने आते ही मुस्करा के बात

करते हैं,

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मुझे तेरी अदाबत बद जुबानी से कोई शिकवा

नहीं हैं,

मुझे जंग और मोहब्बत खुलेआम करने 

का शौक है,

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तू अपना लहू वेबजह की गलतफ़हमियों

 में जाया ना कर,

सँभाल कर रख नसों में इसे वेशकीमती

चीज है,

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दरिया के किनारे यूँ उम्र भर तरसते 

रहे,

चाह थी कभी तो मिलेंगे बांह भर 

जिंदगी में,

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दो दिल इस कदर बेताब थे अंक 

भरने को,

जमाने की आंखे सदा पहरा करती 

रहीं,

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दो फूल भौरे की नजर पर चढ़ 

गए,

भौरा कुर्बान हो गया फूल से वेपनाह

 इश्क कर,

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दो नाव की सवारी डुबाने के लिए

 बनी है,

सोचना है तुम्हे इश्क और नफरत में 

क्या चाहिए, 

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आओ खुलकर दुश्मनी ही कर लें 

दोस्त, 

दिखाबे की दोस्ती खलती है अब

 मुझे,

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          हर रंग का स्वाद आजाद होकर लीजिए,

          कुछ नया कुछ अलग एक बार कीजिये,

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कितने चेहरे पर चेहरे लगाने की फिराक 

में हो,

बहरूपिया ही सही जानते हैं हम तुम नकाब

में हो,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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