।। कविता ।।
“शुद्ध” दूध सा होना है…
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”
कुर्सी मिलेगी गड्डी मिलेगी “न्यौता है”
राग मल्हारें दद्दा के संग,संग गाऊंगा
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”...
छोड़ पुराने संगी साथी डंडा झंडा,
छोड़ के दुल्हन दूल्हा और बराती।।
मनमाफिक रसगुल्ले छक के खाऊंगा,
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”...
छुरा पीठ पर तीन हाथ का पार करूंगा,
राजनीति में हूँ “छुप करके” वार करूंगा।।
दूर दूर तक नहीं “सगा” यह बतलाऊंगा,
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”...
कल थे दागी दाग खूब दिखते दिखते थे,
खुलेआम बिकते बिकते बिकते बिकते थे।।
उनके साथ नहाके गंगा राम नाम गाऊंगा,
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”...
भैया बड़ा चाहता है वापिस घर जाना होगा,
हाथ रखेगा फिर से सिर पर मुस्काना होगा।।
जाँच पड़ी है पीछे मेरे इससे पिंड छुड़ाऊंगा
“शुद्ध” दूध सा होना है “अब जाऊंगा”...
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०९.०२.२०२४ ०८.२१पूर्वाह्न (३८८)