।। कविता ।।
🌷मैं वसंत हूँ🌷
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ,
मंद सुगंध बयार प्रीति का सुर हूँ।।
ना तपती दुपहर ना ठिठुरन भरी शिशिर हूँ,
सब प्रमुदित सब भाँति प्रकृति का उर हूँ।।
हवा वसंती बहे सकल सानन्द प्रफुल्लित,
पशु पक्षी नर नदी पेड़ पौधे सब प्रमुदित।।
मैं मधुमास पुनीत ज्ञान का महा पहर हूँ,
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ।।।
शीतल मंद बयार खड़ी उपहार लिए है,
हरियाली हर ओर प्रेम का हार लिए है।।
मैं मनमथ सुत स्नेह नेह का स्वर हूँ,
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ।।
शिशिर गमन वासंती ऋतु रंग लाई,
प्रकृति देखि स्वयं रूप रंग मुस्काई।।
पीत पर्ण झरि रहे कोपलें गीत गा रहीं,
हवा वसंती बहे नवल रस रंग ला रहीं।।
धरती करि श्रृंगार मोहती मन को जाती,
खग सब कलरव करें कोयले मंगल गाती।।
मैं मदनपुत्र,,मैं हूँ वसंत,मैं रती कुँवर हूँ,
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ।।
खेतों में फसलें गीत गा रहीं लहलहा रहीं,
पीतवस्त्र और हरितवस्त्र में दृश्य आ रहीं।।
मैं वसंत, मैं कुसुमकाल, मैं कुसुमाकर हूँ,
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ।।
प्रेम का हूँ संदेश कोष हूँ महा ज्ञान का,
हूँ मंगल का मूल प्रेमरस के विधान का।।
बौर लदे आमों की कलियां नवअंकुर हूँ,
मैं वसंत हूँ, प्रकृति प्रेम का घर हूँ।।
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१३.०२.२०२४ ०७.०८पूर्वाह्न(३८९)
(वसंत पंचमी के अवसर पर मेरी रचना)