✍️त्रिया चरित्र✍️
एक बार पूर्णपुर राज्य के अविवाहित युवराज पुण्यप्रताप के मन में नारी चरित्र अर्थात त्रिया चरित्र के बारे में जानने की लालसा जागृत हुई। इस विषय पर विस्तृत चर्चा करने हेतु वे राज्य के राजपुरोहित के पास गए,राजपुरोहित अपने किसी विशेष कार्य मे व्यस्त थे।अचानक सेवक ने कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा-महोदय आपसे मिलने के लिए युवराज पधारे हैं।
राजपुरोहित ने कहा- उन्हें सस्नेह, ससम्मान अंदर ले आइए,युवराज ने कक्ष में प्रवेश करते ही प्रणाम किया और फिर अपना प्रश्न पुरोहितजी के सम्मुख रखा और कहा-श्रीमान आप मुझे नारी चरित्र के बारे में ज्ञान प्रदान करें। राजपुरोहित बोले मैं इस विषय पर अधिक प्रकाश डालने में सक्षम नहीं हूँ लेकिन आपको इस विषय पर अधिक ज्ञानार्जन हेतु मार्ग बता सकता हूँ।
युवराज सुनो सिद्धपुर नरेश की पुत्री सुलक्षणा बहुत बुद्धिमान एव अति प्रवीण चतुर युवती है। वह ज्ञान और सौंदर्य की अद्धितीय देवी सदृश है। तुम्हें इस ज्ञानार्जन हेतु उन्हीं के पास जाना चाहिए लेकिन इसके लिए तुम्हारा सामान्य जन की तरह जाना ही उचित रहेगा। युवराज ने पुरोहित जी को प्रणाम करते हुए प्रस्थान की आज्ञा माँगी और अपने भवन लौट गया। दूसरे दिन राजकुमार साधारण वस्त्र धारण कर सिद्धपुर की ओर चल पड़ा,मार्ग में चलते चलते उसे प्यास लगने लगी उसका अश्व भी प्यासा था,दृष्टि दौड़ाने पर थोड़ी दूर उसे एक बगीचा और विशाल सरोवर एवं उसके पास एक बावड़ी दिखाई पड़ी एवं वहाँ उसकी दृष्टि एक सुकुमारी रूपवती युवती पर पड़ी,उसने अपने अश्व को सरोवर किनारे जल पीने हेतु छोड़ दिया,और स्वयं युवती के सन्निकट आकर जल पिलाने हेतु आग्रह करने लगा,युवती ने उसे बावड़ी से जल लाकर जलपान कराया,प्यास से मुक्ति पाकर, राजकुमार ने युवती से कहा-हे सुकुमारी आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे सकें तो पूछूँ ! आप मुझे अति सुयोग्य गुणी विदुषी प्रतीत होती हैं, शायद आप संतोषजनक उत्तर दे मुझे संतुष्ट कर पाएं।
युवती ने कहा- जी पूछिये
राजकुमार ने कहा- मुझे त्रिया चरित्र अर्थात नारी के चरित्र के बारे में जानना है।
युवती ने कहा-मुसाफ़िर आप विवाहित हैं या अविवाहित एवं त्रिया के चरित्र को जानने की इतनी अभिलाषा क्यों है।
युवक ने कहा-हे सुंदरी अभी मैं अविवाहित हूँ लेकिन मेरे पिता मेरा विवाह अतिशीघ्र कराना चाहते है,इसीलिए में ये जानना चाहता हूँ।
इतना सुनते ही युवती जोर जोर से पुकारने लगी बचाओ बचाओ, मेरी रक्षा करो, जल्दी आओ, राज सैनिकों, कोई तो आओ, मुझे बचाओ, वह बार बार जोर जोर से चिल्लाए जा रही थी,राजकुमार को कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि ये हो क्या रहा है,और वह मन ही मन डरने लगा और बोला- आपको मैनें एक सुशील युवती जानकर ही अपना प्रश्न किया था और आपने उत्तर देने हेतु स्वीकृति दी थी लेकिन अब आप ये क्या कर रही हैं।
किंतु राजकुमारी ने जोर जोर से बचाओ बचाओ चिल्लाना जारी रखा,थोड़ी देर में सरोवर की तरफ बहुत से नगरवासी आते दिखे मुसाफ़िर अब और भयभीत होने लगा-इसी बीच युवती सरोवर में कूद गई उसके कोमलांग भीग गए वह सच मे सौंदर्य की प्रतिमा थी,इसी बीच उसने कुछ जल युवक पर भी उड़ेल दिया जिससे वह पूरी तरह भीग गया,युवक कुछ भी समझ नहीं पा रहा था ये युवती क्या करने वाली है, और ऐसा क्यों कर रही है। अर्थात ये क्या दिखाना चाह कर रही है, थोड़ी देर में सैनिक और नगरजन इकट्ठे हो गए भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। राजकुमार अत्यधिक भयभीत होता जा रहा था।
अचानक युवती बोली- धन्य हैं ऐसे युवक,धन्य है इनका साहस, मैं सरोवर के किनारे जलचरों को निहार रही थी सहसा एक बड़े जलचर ने मुझ पर हमला कर दिया, और मैं सरोवर में डूबने लगी,जलचर मुझे अपने चंगुल में फँसाने की मानो ठान चुका था,पहले तो मैने स्वयं निकलने की भरसक कोशिश की लेकिन जब में असमर्थ होने लगी तभी आप सबको सहायता हेतु पुकारा,लेकिन भला हो इस युवक का जो ठीक समय पर मेरी पुकार सुन आगया और अपनी जान की बाजी लगाकर जलचर से बचाकर सरोवर के बाहर मुझे निकाल लाया। राजकुमार अवाक स्तब्ध शांत खड़ा था। उसकी समझ मे ये चरित्र ये नाटक ये घटनाक्रम नहीं आ पा रहा था, वह समझ पाने में असमर्थ हो रहा था, ये युवती क्या नाटक रच रही है।नारी के इस रूप चरित्र को समझ पाने में वह अपने आपको अयोग्य पा रहा था।
युवती ने सभी नगर जनों एव सैनिकों से कहा- इस युवक का कल राज दरबार में यथोचित सम्मान एव नगर भृमण का आयोजन कराया जाए, सभी ने युवक के साहस की सराहना करते हुए जयघोष किया,और उसे कंधों पर उठा लिया। और वे सब नगर की ओर वापिस लौट गए,तब युवती बोली- कुछ समझ आया मुसाफ़िर, यही था आपके प्रश्न का उत्तर अर्थात नारी चरित्र अथवा त्रिया चरित्र, हे राहगीर युवक सुन- सिद्ध,योगी,ध्यानी,ज्ञानी,राजा, महाराजा,सामान्य जन कोई भी त्रियाचरित्र अर्थात नारी चरित्र को जानने में अब तक सफल न हो सका है।
युवराज अब तक बहुत कुछ त्रिया चरित्र के बारे में जान चुका था,साथ ही युवती के बुद्धिकौशल और चातुर्य को भी,कितने सहज सरल माध्यम से उसने त्रिया चरित्र का नाटकीय अभिनय प्रस्तुत कर दिखाया था। अब युवराज ने अपना परिचय देते हुए पुरोहित द्वारा बताए सुझाव को युवती के समक्ष रक्खा,तदुपरांत युवती ने भी अपना परिचय सिद्धपुर नरेश की पुत्री के रूप में दिया,राजकुमारी के आदेशानुसार युवराज को नगर भृमण कराया गया एवं सिद्धपुर नरेश ने युवराज का यथोचित आदर सत्कार करते हुए अपनी गुणवान राजकुमारी का विवाह पुण्यप्रताप के साथ कर दिया।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२०.०४.२०२३ १०.४५अपराह्न(२९५)