अशआर-इक कहानी रहेगी !


अशआर

इक कहानी रहेगी !


मौसम बदलते हैं,हम भी बदलते हैं

जब हम बदलते हैं,रिश्ते बदलते हैं


ना ये ख़िलाफ़ हैं,ना वे ख़िलाफ़ हैं

जब हो ख़िलाफ़ रब,तब सब ख़िलाफ़ हैं


ख़िलाफ़ वे भी नहीं,मुआफ़िक ये भी नहीं 

हक़ीक़त में सगे,ये भी नही,सगे वे भी नहीं 


होती है हर एक में,कुछ अपनी ख़ासियत 

हर एक बेहतर बेहतरीन नायाब होता है


उसकी जिद रही,बस उजाला बिखेर दूँ

जलता रहा ताउम्र,वह आग के आगोश में


तेरी सोच उनकी सोच से,मिले न मिले

मगर ध्यान रहे,दिल में फ़ासले न हों


किसी पर यूँ ही,ऐतबार न कीजिए

ज़िंदगी मज़ा है,ख़ुद मज़ा लीजिए


ताउम्र न तेरी न मेरी,जवानी रहेगी

रहेगी तो बस,इक कहानी रहेगी


इश्क़ जब बाजार में,बिकता हुआ मिला

जो खरीदने आया,वह आदमी न था


दौलत की भूख ने,बरबाद कर दिया

एक बार जो गिरा,गिरता चला गया


कीचड़ में मुँह सना,सनता चला गया

एतबार जब मरा,मरता चला गया


सियासत की जड़ें,कमज़ोर बहुत हैं

ज़रा सा बोल दे कोई,लिफाफे खोल देते हैं


चिराग़ों की किसी से,अदावत नहीं रही

उजाला परोसने की,आदत बनी रही


होते रहे फ़ना हर रात इश्क़ में

था इश्क़ आग से रवायत बनी रही


भरोसे की उम्र कम ही,बाकी रह गयी है

ज़माना बदला,शेष झाँकी रह गयी है


हजारों लोग झुंडों में,चले चलते गए

मजे की बात थी,कोई न साथ चल सका


ना उसे दवा लगी,ना कोई दुआ लगी

जिसको किसी गरीब की,जब बददुआ लगी


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१८.०४.२०२३ १०.१५ पूर्वाह्न(२९४)



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