गज़ल-वफ़ा होती तो बात होती

 

🌷ग़ज़ल🌷

वफ़ा होती तो बात होती


खामियां ढूढ़ता रहा,इनमें भी उनमें भी

शुरुआत अगर ख़ुद से,होती तो बात होती


नज़र उनके गिरेबाँ पै,लगाए रक्खी

अपने गिरेबाँ पै नज़र,होती तो बात होती


करते रहे हम यूँ हीं,मुखौटों से दोस्ती

दोस्ती मुखौटों बग़ैर,होती तो बात होती


सही को सही,गलत को गलत कहते

अगर ये आदते शुमार,होती तो बात होती


रिश्तों के महीन धागे,तुरपन सिलवटें

इनमें धागों सी पकड़,होती तो बात होती


अपनों से ख़फ़ा,और औरों से वफ़ा

अगर अपनों से वफ़ा,होती तो बात होती


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२१.०४.२०२३ १२.३५ अपराह्न(२९६)






Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !