अशआर-दिल की आवाज़

 

अशआर

दिल की आवाज़

// ०१ //

ज़रूरी है अब बदलना हमको

आ जाना चाहिए अब चलना हमको


सिखाती हैं ठोकरें जिंदगी जीना

ज़रूरी था कुछ ठोकरें खाना हमको


// ०२ //

वे जहर की फसलें उगाते मिले

उस पर कमाल ये मुस्कराते मिले


वे शरीफ़ दिखते थे मगर थे नहीं 

बदल बदल कर रंग गुनगुनाते मिले


// ०३ //

जब वे दिल में उतरे तो उतरते गए यारो

और जब दिल से उतरे तो उतरते गए यारो


कुछ धोखेबाज और खुदगर्ज़ होते हैं

यक़ीन मानिए यही लाइलाज मर्ज होते हैं


// ०४ //

हमने तो उसे भला इक आदमी समझा

आदमी सा था ”मगर आदमी नहीं"आदमी समझा


खंजर जब पैबस्त हुआ मिरे दिल में यारो

बड़े ही नासमझ थे हम उसे क्यों आदमी समझा


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

०१.०३.२०२४ १०.३५अपराह्न (३९३)


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