व्यंग्य(जयचंदों की फौज)

         


                             व्यंग्य
जयचंदों की फौज

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सब एक ही थाली में खाते हैं,

जनता को रुलाते हैं,

वोट मांगते समय चरणों 

मे गिर गिर पड़ें,

जाति पाँति का जहर घोले,

काला सफेद झूठ बोले,

कग्रेसी भाजपमय हुए,

भाजपई कग्रेसमय,

सब मिल गए,

दलदल

बन गए

सब की जय जयकार

मांगता हूँ,

जनता की पुरजोर हुंकार मागता हूँ,

जब ये नीति धर्म भुलाकर, 

सुचिता सिद्धान्तों को,

धता बताकर,

गले मिल सकते हैं,

आओ हम भी इनका, वहिष्कार करें

राष्ट्रवन्दन करें

खंडन करें,

ऐसे दलबदलुओं का,

पुरजोर बहिष्कार मांगता हूं,

वर्तमान कालखण्ड में,

कुछ प्रांतों में,

सरकारें आज भी ऐसी हैं,

जिसमें कुछ मौकापरस्तों ने अपनी पार्टी को,

सिद्धांत विहीन बताया

और सरकार गिरवा दी,

तथा नई सरकार में

मंत्रीपद पाया,

वोट पार्टी के चेहरे पर

ले गया,

लेकिन ये क्या, 

जयचंद धोखा दे गया,

ये एक हो शासन चलाते हैं,

जनता ठगी सी रही

अब ये सरकार किस दल की,

कही जाए,

सब गड्डमगड्ड हो गया

कंग्रेसी भाजपई हुआ,

और भाजपई कंग्रेसी हो गया,

हमने तो उस दल को मत दिया था,

ये क्या हो गया,

मेरा नेता रसातल में ईख बो गया,

पार्टी ऐसे जयचंदों को परख नहीं पाई, 

वीर पृथ्वी ने जयचंद की बदौलत ही,

कायर गौरी से मात खाई,

ये आधुनिक धोखेबाज जयचंद, 

दल को ही खा जाएगें,

गर पार्टी चाणक्य परख 

नहीं पाएंगे,

अपनों से ही दगाकर

छा जाते हैं,

ये बार बार कैसे सत्तासीन 

हो जाते हैं,


जयःहिन्द

शिव शंकर झा "शिव"

स्वत्रंत लेखक

मानवाधिकार कार्यकर्ता


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