सगा भाई
रघुवर सिंह और सुघर सिंह दो सगे भाई थे दोनों के दोनों बलिष्ठ, और कद काठी से लगभग छह फुट से अधिक ही थे ,दोनों में अगाध प्रेम और तालमेल था उनके परस्पर स्नेह को देख कर गांव और दूर दराज के लोग, लुगाई उनके प्रगाढ़ भ्रात प्रेम की उपमा दिया करते थे, कहते देखों दोनों भाई राम भरत की तरह रहते हैं।
दोनों की दिनचर्या एक समान एकसार थी, हम उनको युवा अवस्था से ही जानते थे,सुबह चार बजे जगना,एव सर्व प्रथम शौच आदि से निब्रत होकर,चरी को दोनों भाई मशीन से कूटते तब मशीन दो ब्लेड बाली होती थी जो एक पहिये में कसे हुए होते थे,एक भाई चरी को पनाले के माध्यम से डालता और दूसरा पहिया तेज गति से चलाता और चरी कूटता, ये क्रम अदल बदल कर होता,चरी कूटते कूटते दोनों ठेठ सर्द मौसम में पसीने से नहा जाते,उसके बाद भैंस,गाय,और पड़रा, पड़िया, आदि जानबरों को मड़इया से बाहर निकालते उनकी नांद साफ करके उसमें सानी लगाते(सानी यानी जौ(बेजर)का दलिया,निबोले,एव खर का विशेष मिश्रण साथ ही घर का बची हुई साग रोटी आदि) उसके बाद ताजी मट्ठा मिठाई(गुड़)के साथ पान करते,दोनों अब बड़े हो रहे थे उम्र में कोई विशेष अंतर न था कोई दो वर्ष का रहा होगा,पिता जी चाहते थे कि बड़ा बेटा रघुवर घर बाग की जिम्मेदारी ले ले, ताकि वे मोहमाया से विरत हो सके,
लेकिन रघुवर सदैव आनाकानी करते रहते कहते कुछ दिन और हो जाने दो फिर छोटे भाई सुघर को घर बाग की जिम्मेदारी पिताजी से दिलबा देगें और दोनों भाई मगन रहेगें।
पिता सदैव कहते बेटा रघुवर तू बड़ा है मालिकाना_हक_तेरा_है_तू_इसे_सम्भाल लेकिन रघुबर मना कर देते,और अपने छोटे भाई सुघर को आबाज देते सुघर इधर तो आ,सुघर तीव्र वेग से भागता हुआ हाँ दद्दा कहो, हमारे गॉव में बड़े भैया को सम्मान से दद्दा कहा जाता था,बेटा सुघर पिता जी चाहते हैं मैं घर बाग की जिम्मेदारी संभालू,लेकिन मेरी हार्दिक इच्छा है तू ये जिम्मेदारी संभाल,किंतु सुघर कभी हां न भरता,
समय अपनी गति से चल रहा था दोनों के ब्याह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुए,और घर में दो नवबधूओं का प्रवेश हुआ,कुछ समय तक दोनों देवरानी जिठानी स्नेह से रही फिर फुट पड़ गयी,ये दोनों भाइयों के लिए वज्रपात था,पिता मरणासन्न अवस्था में थे उनकी खटिया बड़े बेटे रघुवर के छप्पर मे बिछाई गई, ताकि जेठानी ही उनकी सेवा करें यही बात लड़ाई की जड़ थी दोनों भाई चाहते थे कि देवरानी जेठानी में सुलह हो जाये लेकिन ये न हो सका।
पिता ने अब समझ लिया था कि घर मे किसी की नजर लग गयी है अब इन दोनों भाइयों में अधिक स्नेह न रह सकेगा, सच कहा है सबसे ज्यादा पारखी नजर सन्तान को जांचने की पिता की ही होती है।
अपने सामने बराबर बंटबारा कर दिया गया,अब माँ पिता की बारी आई वह किसके पास रहेगें रघुवर और सुघर दोनों ही चाहते थे कि माँ बाप मेरे ही पास रहें लेकिन बंटबारे के दौरान छोटे भाई सुघर की पत्नी कमनिया झुंझला कर बोली मैंने ठेकौ नांय लै रखकौ अपने पास रखबे कौ, अंत में माँ बाप रघुवर और उसकी पत्नी कमली के साथ आ गए,समय अब रुष्ट हो रहा था,भाइयों में तल्खी बढ़ती जा रही थी,जो केबल संवाद हीनता की देन थी।
अब दुश्मनों के बारे न्यारे थे सुघर को अपने साथ ले जाने लगे साथ ही मदिरापान का आदी बना दिया,मदिरा के शौक ने उसे जीर्ण शीर्ण कर दिया,उधर रमनिया भी खुलकर गॉव की मेहरियों के साथ बतियाती रहती,कभी इस घर कभी उस घर, लेकिन कमली अपने घर सास ससुर के साथ ही रहती,छोटा सुघर सिंह अब नशे का आदी हो चुका था, धीरे धीरे सारी जायदाद को दोस्तों के संग सौबत में उड़ा बैठा,अब कर्जा ले ले कर नशा करता,रमनिया दूसरे के खेत में मजदूरी करने जाने लगी,रघुबर सिंह बहुत आहत व्यथित थे,
क्या करें वही छोटा सुघर सिंह कैसे वापिस आये,एक दिन गाँव का जमीदार चोगा सिंह दस बारह लठैतों के साथ सुघर सिंह के द्वार पर आया,और बोला बाहर निकल सा???ले जब सुघर सिंह बाहर नहीं निकला, तब जग्गा राम से बोला जा अंदर देख कहां छुपा है (जग्गा उसका अर्दली लठैत था) अपनी लुगाई की ओट में तो नहीं छुप गया देख जाके कड़क आबाज में आदेश दिया,
बड़ा भाई रघुवर सिंह अपने अहाते में माँ बाप के पास बैठा था,उसके कान में आबाज बड़ी कुछ लोग सुघर सिंह के दरबाजे को पीट रहें हैं उन्होंने आबाज दी कौन है,उधर आबाज आयी मैं जग्गाराम, जमीदार साहब के साथ बसूली करने आया हूँ रघुवर ने पूछा काहे की बसूली,उसने कहा पैसा लेने है आज ही नहीं तो जॉकी औरत उठाय लै जाएंगे,अब रघुबर को गुस्सा आ गया बोला क्या कहा तूने तू हमारे घर की बहू बेटी को हमारे रहते उठा ले जाएगा,खुपड़िया फार देगें तेरी,जमीदार चौगा सिंह बोला ए रघुबर तेरे सू कोई बात नाय तू अपने द्वारे जा,
कहा मतलब तुम्हारौ जमीदार साहब,जमीदार बोला, इसे काट दूगो, अपना पैसा लेना है आज ही अगर पैसा नहीं तो इसकी औरत हमारे यहाँ मजदूरी करेगी हमेशा के लिए ,घर के अंदर छुपा सुघर सिंह और कमनिया ये बातें सुन रहे थे, अब उन्हें पछतावा हो रहा था कि गाँव के कहानीकार शिव_शंकर_झा"शिव' सच ही कहते थे कि बुरे समय मे देहरी के अंदर के भाई बन्धु ही काम आते हैं बाहर के नहीं मैँ तो लेखक महोदय की बातों को नकार देता था,
रघुवर सिंह ने जमीदार से पूछा तुम्हारे किंतने पैसे हैं,उसने कई हजार में रकम बना दी,मूंद से ज्यादा सूद लगा दी,जमीदार बोला देना है तुम्हे या उसे लुगाई समेत घर से बाहर खिचाबाऊं,ये आबाज सुनकर सुघर और कमनिया थर थर कांप रहे थे,रघुवर सिंह ने अपनी आधी जमापूंजी,जेबर बेंचकर जमीदार की रकम सूद सहित अदा कर दी,अब रघुबर सिंह सुघर सिंह और कमनिया को अपने पास बुलाकर लाये और कहा देखा तुमने बुरी संगत काअसर,
अब कल से हल बैल सम्भालो और खेत करो,सुघर सिंह और कमनिया बोले दद्दा हमारा तो सारा खेत बिक गया,अब हमारे पास खेत कहाँ, बड़े भाई रघुवर ने कहा मेरा खेत घर सब तेरा ही तो है रघुवर सिंह ने अपने हिस्से का आधा भाग छोटे भाई के नाम कर दिया और पुनः दोनों भाई प्रेम से रहने लगे,अब सुघर सिंह को अहसास हो चुका था बुरे वक्त में अपना ही साथ देता है,कुछ समय बाद सुघर सिंह शहर चला गया और अपना छोटा सा व्यापार करने लगा,
कालांतर में व्यापार चल पड़ा,और उसने कारखाना खड़ा कर दिया,लेकिन अब उसे अहसास था भाई से बड़ा कोई नहीं, अपनी जायदाद का एकमात्र मालिक रघुवर सिंह को बनाया,ये खबर रघुवर को लगी तो बहुत प्रसन्न हुए लेकिन जब पता चला इसने अपना कल कारखाना मेरे नाम किया है,इससे नाराज हुए वे, उन्होंने छोटे द्वारा कमाई सारी सम्पत्ति सस्नेह छोटे भाई को वापिस कर दी,
फिर पूर्व भांति दोनों भाई आनन्दपूर्वक रहने लगे।
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।।जयहिंद।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार