शेर(चिराग)

                  


चिराग

चिरागों की रोशनी भी चुराने की जुगत जारी है,

अमावस पूछती है चिराग से तुम रोशन

 क्यों नहीं होते,

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हाँ में हाँ मिलाने की परिपाटी का दौर 

जारी है,

मुंह पर मिष्ठी सा पीछे कडबाहट बहुत 

भारी है,

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किताबों के सबक गमगीन से होते जा

 रहे हैं मौजूदा वक्त,

यहाँ अब कोई इन पर अमल नहीं करता

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हमें मालूम है चौकीदार मयसंगीनों के बैठे हैं दरबार में,

मगर आबाज और तेज होगी तेरे द्वार पर आते आते,

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मुझे नकाबों में छुपे किरदार नही सुहाते जनाब,

 इससे बाहर आकर रूबरू होकर तो दिखा

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मुझे मरने से डर नहीं लगता अब दौरे जहां सुन,

सिर्फ और सिर्फ उन्हें बताना है कि मौत भी आती है,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

16.10.21

07.18 pm

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