कहानी
★★★★★गिद्ध की भूख★★★★★
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बूढ़ा गिद्ध बरगद के विशाल दरख़्त पर बैठा विचार कर रहा था कि कैसे आज भोजन के रूप में ताजा गर्मागर्म मांस खाया जाए, क्या योजना,रणनीति बनाई जाए
भूख कैसे शांत की जाए,
मेरा शरीर दुर्बल और आश्रित जो हो चला है, मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ शरीर मे शक्ति विलुप्त सी होती जा रही है,
उसके मन में विचार आया अरे इससे क्या शरीर ही तो बूढ़ा हुआ लेकिन मेरा दिमाग तो पूर्णरूपेण स्वस्थ है सक्रिय है.इसकी परख करते हैं। अभी भी चालाक खोपड़ी मेरे साथ ही है,
चलो इसका प्रयोग करते हैं….
क्या प्रयोजन करूँ कि काम बन जाये भूख मिट सके और षणयंत्र सफल हो जाये.
सहसा उसके शातिर दिमाग ने एक युक्ति सुझा दी आधुनिक नेता की तरह क्यों ना आदमी से आदमी को मजहब के नाम पर,लड़ा दिया जाए, जाति के नाम पर,पंथ के नाम पर,धर्म के नाम पर,मंदिर मस्जिद के नाम पर,हिंदू मुस्लिम के नाम पर, और अपना केवल अपना उद्देश्य सिद्ध किया जाए!
विचार तो बहुत उम्दा था लेकिन "मानवता के लिए दावानल" और घातक
मुझे पता है
गीध ने पुनः विचार किया कुछ एक धर्म के नाम पर उगाही,लूट,अत्याचार,करने वाले आदमी ऐसे ही मौके की तलाश में रहते हैं।
चलो किसी को दिग्भ्रमित करते हुए लालच का लडडू फेंकते हैं शायद कोई फंस जाए
गिद्ध ने सोचा.
लेकिन दुबिधा ये थी इसे करेगा कौन,ये कार्य मेरा बूढ़ा शरीर तो नहीं कर सकता मैं न ठीक से उड़ सकता हूँ और ना लड़ सकता हूँ हाँ लड़ा अवश्य सकता हूँ ये गुण है मुझमें,
चलो युवा पीढ़ी को इसमें फंसाकर गुमराह करके अपना कार्य मन्तव्य पूर्ण कराते हैं,तभी उस मानवीय मांस के भूखे स्वार्थी गिद्द की नजर एक मजबूत फुर्तीले बाज पर गयी…….
अरे सुनो- बाज मित्र कैसे हो सुस्त क्यों हो
बाज बोला- काफी दिनों से भरपेट भोजन नहीं मिला है गिध्दराज,
इसलिए चित्त अशांत है,
अरे बेटा क्यों परेशान होते हो हमारे होते हुए तुम निराश मत हो मेरे जैसे बुड्ढे किस काम आएंगे,
तुम कतई परेशान न होना,
शातिर गिध्दराज ने कहा,मैं तुम्हारी इस समस्या का निदान चुटकियों में कर सकता हूँ लेकिन तुम्हें मेरी शर्त माननी पड़ेगी.
मेरी एक योजना को पूरा करना होगा फिर देखना कैसे मिलता है रोजाना गरमा गरम ताजा मांस,
बाज के मुंह में पानी आ गया,
बाज बोला- बताइये
अपना मन्तव्य मान्यवर गिध्दराज,
युवा बाज ने कहा...
सुनो नदी के किनारे जो मरी हुई गाय पड़ी है,उसका कोई अंग या मांस का लोथड़ा तुम्हे उठा कर मंदिर में डाल देना है,
इसे करने के तदुपरांत तुम्हें इसी तरह एक और कार्य बड़ी फुर्ती और चतुराई से करना होगा, इन दोनों मिशन में तुम्हें कोई देख ना ले मजहबी लोगों को लगना चाहिए कि ये कुकृत्य किसी धर्म बिरोधी लोगों का किया हुआ है।
और सुनो दूसरे प्रयोजन में तुम्हे सुअर का अंग या मांस का टुकड़ा मस्जिद में डाल देना है चुपके से,फिर देखना कमाल,केवल और केवल इतना सा मामूली कार्य तुम्हें करना है फिर देखो इसका असर.
बस इतना सा कार्य है
तुम कर पाओगे,
बाज बोला- बिल्कुल कर पाऊंगा बाज ने कहा,
ठीक है फिर लक्ष्य पूर्ण करो
गिद्ध ने कहा
इसमें बड़ी बात क्या है ये तो चुटकियों का काम है मेरे लिए
मुझे तुमसे यही उम्मीद थी गिद्द बोला-
उसने उस युवा बाज को अपने कार्य हेतु फंसा लिया था,अपने शातिर दिमाग से.लालच से.
बाज बोला-लेकिन गिध्दराज इससे हमें गरम गरम ताजा मांस कैसे मिलेगा,
गिद्द बोला- धीरज रखो सब्र का फल मीठा होता है,यही कमी है तुम युवाओं में परिणाम तुरन्त मांगते हो,धीरज धरो पहले ये कार्य करके आओ फिर देखना परिणाम,
पहले इतना काम करो,
ध्यान रहे जानवर वही हों जो मैंने बताए हैं,
ठीक है गीधराज- बाज बोला,
और भर दी तेज उड़ान बाज ने कार्यसिद्धि हेतु
कुछ ही देर में उसने मांस के लोथड़े पंजों में भरकर गीध के बताये हुए स्थानों पर डाल दिये।और वापिस बाज गीध के पास आ गया. और बोला मैं तुम्हारे बताए हुए काम को कर आया,
गीध बोला- 'शाबास" हुनरमंद हो
बाज ने कहा- लेकिन ताजा मांस कब मिलेगा बहुत भूख लगी है. उस शातिर गीध ने बाज के दिमाग को अपने अधीन कर लिया था,उसे भटकाने में वह सफल हो गया था,गीध बोला कल से तुम मेरे लिए ताजा ताजा मांस रोज लाओगे.
वह तो ठीक है लेकिन मिलेगा कैसे ये गणित कैसे विठाया है तुमने,
बाज बोला-जल्दी बताओ ये चमत्कार कैसे होगा,
गीध बोला-सुबह का मंजर देखना मित्र, भोर के इंतजार में दोनों सो गए सुबह होते ही मंदिर और मस्जिद के बाहर नासमझ बहकने वाले मजहबी लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी,भयानक शोरगुल मजहबी नारों की कान फाड़ने बाली आबाज,सभी के चेहरे गुस्से से लबरेज मानो मानवता धूलधूसरित ही गयी हो,कुछ ही देर में हमले होने लगे लड़ाई छिड़ गई जिसके हाथ मे जो पड़ा वही हथियार बना लिया,गिद्ध के निजी स्वार्थ ने आज आदमियत खत्म करा दी,शान्ति प्रिय शहर जलने लगा धर्म के नाम पर और भेंट चले मजबूर मजदूर दो जून की रोटी बमुश्किल लाने वाले गरीब,
देखते ही देखते मार काट मच गई मजहबी नारों ही नारों का शोरगुल.नर अंग कट कट कर गिरने लगे सोचने का वक्त किसे था मारो मारो की कर्कश आवाजें,कुछ ही समय मे शहर जलने लगा, चारो ओर लाशें ही लाशें चीत्कार और विध्वंश मानवता खण्ड खण्ड होने लगी।
बच्चे सहम गए महिलाएं आबरू बचाने हेतु इधर उधर सुरक्षा के लिए भागने लगीं।
कोई कुछ समझना ही नहीं चाह रहा था, दोनों ओर से मजहबी नारों का शोर और मारकाट,दोनों ही पक्ष समझ ना सके गिध्द जैसे स्वाथी षनयंत्रकारी गद्दारों की करतूतें, और अपने स्वार्थ हेतु इस्तेमाल करने वालों की चाल,
बिना सोचे समझे भिड़ गए और मर गए
गीध अपनी चाल में कामयाब हो चुका था उसने बाज से कहा सुनो तुम अब पुनः उन्हीं उन्हीं स्थानों पर जाओ जहाँ तुम मांस के टुकड़े डालकर आये थे,
ठीक है बाज ने कहा-बाज अपनी तेज गति से उक्त धर्मस्थलों पर पहुंच गया अरे ये क्या इतनी मारकाट लाशें ही लाशे गरमा गरम नर आह मजा आएगा।
उसका मन प्रसन्न हो गया गरम गरम ताजे नर मांस को भरपेट खाया और अपने गुरु गिध्दराज के लिए भी लेगया
एक छोटी सी ना समझी की वजह से इतना रक्तपात मच गया अगर दोनों धर्मामलम्बी सूझबूझ का परिचय देते हुए इस षणयंत्र की गहराई में जाते तो ये रक्तपात निश्चित ही रुक जाता मानवता मरने से बच जाती,
दोस्तो इस कहानी को लिखने का उद्देश्य बस इतना सा था कि मजहब के नाम पर लड़ाने बाले गिद्ध और बाज हमारे अपने बीच भी हैं आसपास ही हैं।
हमें सचेत और जागरूक रहना है कि कोई बाज मजहबी मांस का लोथड़ा हमारी ओर फेंककर अपना मन्तव्य पूर्ण करने की जुगत में तो नहीं है,
मेरे लेखन का उद्देश्य किसी धर्म विशेष को लक्ष्य करना बिल्कुल नहीं है।
आओ हम सब मिलकर समरसता पूर्ण जीवन जियें.और एक दूसरे के सुख दुख में शरीक हों शपथ लें विचार करें
दोस्तों ये कहानी आपको कैसी लगी अवगत कराएं।
जयःहिन्द
शिव शंकर झा"शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार