शेर(भीड़ में गुम होने से बच)

               "'शेर"

भीड़ में गुम होने से बच

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भीड़ में गुम होने की आदत नहीं रही

 मुझे दोस्त,

मैंने आंधियों के बीच जलते चिराग से सीखा है

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कफ़न के साथ तो सबको दफन होना है,

यकीं कर,

जो लोगों के दिलों पर छाप दे अपना निशाँ,

ऐसा जतन कर

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मैंने मन्नत नहीं मांगी कभी दर पर तेरे आकर मेरे रब,

तू बस भीड़ को चीरकर आगे निकल 

आने का हौसला दे

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खेल के मैदान को तू अदाबत का मैदान 

ना बना,

तू अपने खेल में मगरूर रह अब गुरूर 

ना कर

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बहुत से बादशाहे हिन्द बन कर आये यहाँ,

कोई सदा के लिए नहीं ये दरनिनार ना कर 

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तुझे शौहरत मिले दौलत मिले भरपूर 

भर भर,

मगर जिगरी यार की तौहीन की जुर्रत

 ना कर,

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जंग अधूरी ना रहे जीतने की जिद इस कदर हावी है,

वस इसी वास्ते ये जतन और सफर 

जारी है

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भूख मेरी नहीं है कुछ सुनो तुम दोस्त,

मुझे वस बुझे चेहरों पर हंसी लानी है,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

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