"'शेर"
भीड़ में गुम होने से बच
-----------------------------------------
भीड़ में गुम होने की आदत नहीं रही
मुझे दोस्त,
मैंने आंधियों के बीच जलते चिराग से सीखा है
-------------------------------------–---
कफ़न के साथ तो सबको दफन होना है,
यकीं कर,
जो लोगों के दिलों पर छाप दे अपना निशाँ,
ऐसा जतन कर
-----------------------------------------
मैंने मन्नत नहीं मांगी कभी दर पर तेरे आकर मेरे रब,
तू बस भीड़ को चीरकर आगे निकल
आने का हौसला दे
-------------------------------------------
खेल के मैदान को तू अदाबत का मैदान
ना बना,
तू अपने खेल में मगरूर रह अब गुरूर
ना कर
-------------------------------------------
बहुत से बादशाहे हिन्द बन कर आये यहाँ,
कोई सदा के लिए नहीं ये दरनिनार ना कर
-------------------------------------------
तुझे शौहरत मिले दौलत मिले भरपूर
भर भर,
मगर जिगरी यार की तौहीन की जुर्रत
ना कर,
------------------------------------------
जंग अधूरी ना रहे जीतने की जिद इस कदर हावी है,
वस इसी वास्ते ये जतन और सफर
जारी है
------------------------------------------
भूख मेरी नहीं है कुछ सुनो तुम दोस्त,
मुझे वस बुझे चेहरों पर हंसी लानी है,
-------------------------------------------
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार