शेर(कश्तियाँ)

 


【कश्तियाँ】

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कश्तियों के डूबने की फिकर है नहीं मुझे,

मैं समंदर की जिद तोड़ने के सफर पर हूँ,

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तेज आंधी संग बबंडर भाने लगे हैं अब,

मुझे इंसान ने इंसान की फितरत बता दी, 

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किनारे सहम से गये है हवा के रुखको देख,

मैं जिद्दी हूँ रुकूँगा सफर पूरा होनेके बाद ही,

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कहीं पर राह की दुश्वारियां करती रही मजबूर,

मुझे जिद थी तय समय पर मंजिलें पार करने की,

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खूब देखा समय की मार का प्रहार का मंजर,

मगर पत्थर सा दिल लेकर बढ़ता रहा हूँ मैं,

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खूब आबाज आईं रुक सफर भारी कटीला है,

मगर जिद ठान ली मैनें इसे तो पार करना है,

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शिव शंकर झा"शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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