शेर(किताब से पन्ने)

          

किताब से पन्ने

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इश्क की किताब से पन्ने दरक दरक कर फट गए,

जो नकाब में छुपे थे वे हल्की सी हवा में हट गए,

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आईना दिखाने की नाकाम कोशिश मत कर,

हमें मालूम है तेरे चेहरे पर दाग कितने हैं,

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तनिक इधर भी नजरें बदस्तूर रखो जनाब,

ऊंट किस करबट बैठ जाये पता किसको है,

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हमें पता है वह बड़ा खूबसूरत सयानाहै दोस्त,

जान हथेली पर रखी है हमने खबर उसे भी है,

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जालसाजी से सनी किताब बोल रही है, 

तेरे वेपरदा होने के राज खोल रही है,

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खुली किताब की लिखाबट सी रही जिंदगी,

मेरे दामन पर स्याही के दाग अब नहीं लगते,

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तेरे अल्फाज अब साथ नहीं देते तेरी आबाज का,

किताब तेरी पर जिल्द किसी और की क्यूं चढ़ाए हो ,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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