व्यंग्य
(चालान कट गया !)
दनदनाता हुआ,
लालबत्ती लांघता हुआ,
चमचमाती कार से रईसजादा आया,
रुक रुक रुक सिपाही जोर से चिल्लाया,
वह थोड़ा मुड़ा,देखा और स्पीड बड़ा दी,
उसने आगे गाड़ी गरीब के ऊपर चढ़ा दी,
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नशे में धुत्त था बेकाबू,
कान में ठुंसी सी लीड,
शीट बेल्ट काफूर थी,
रुआब और हनक भरपूर थी,
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एक चौराहे की लालबत्ती तोड़ते हुए,
पैसे और पावर का छद्म रंग दिखाते हुए,
वह निकल गया,
लेकिन आरक्षी उसके पीछे पड़ गया,
वह खुद अपने को नहीं संभाल पा रहा था
गाड़ी तेज अधिक रफ्तार भगा रहा था
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उसने जैसे ही अगला चौराहा पार किया,
ट्रैफिक कार्मिक ने रुकने का हाथ दिया,
वह अपनी गाड़ी भगाने के ख्वाब में था,
या फिर वह अपने बाप के रुआब में था,
कुछ दूरी पर दबोच लिये गए जनाब,
अब देखना पुलिस का दम और रुआब,
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उसने हनक में बहुत बेवाकी से कहा,
ट्रैफिक कार्मिक ने शालीनता से सहा,
आंखों में था सुर्ख लहू का गोला,
वह आंखे तरेर कर बोला,
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सिपाही चकराया,
कौन है भाया,
मेरी गाड़ी रोकने की हिम्मत कैसे की,
वर्दी उतरवा दूंगा खूंटी पर टँगबा दूंगा,
सिपाही ईमानदार खुद्दार था,
सिपाही को गुस्सा आ गया
उसका भी खून गर्म हुआ
दिमाग गरमा गया,
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यातायात प्रहरी बोला,
तेरे जैसे सैकड़ों रोज मिलते हैं
हम यातायात प्रहरी ये रोज सहते हैं,
हमें किसी किसी चौराहे पर,
बूथ मिल जाता है,
सिर छुपाने को,
और कहीं मिलता भी नहीं,
पूरे दिन बिना थके खड़ा रहता हूँ,
यातायात व्यवस्था,
की खातिर अड़ा रहता हूँ,
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कुर्सी तो छोड़,
कहीं कहीं बैंच भी नहीं मिलती,
लेकिन,
मेरी ड्यूटी के प्रति निष्ठा नही हिलती,
खुली धूप में बदन जलाता हूँ,
मुस्कराता हूँ गुनगुनाता हूँ,
तब तनख्वाह पाता हूँ,
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कुछ भी हों आप मुझे फर्क नही पड़ता,
मैं रोजाना खुली धूप में,
दिन में,
बरसात में,
काली या चांदनी रात में,
मुस्तेद हूँ मैं यातायात प्रहरी हूँ,
मैं सजग हूँ हाँ में ट्रैफिक प्रहरी हूँ,
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मौसम के थपेड़े डटकर सहता हूँ,
मस्त विंदास निडर सदा रहता हूँ,
हक और मेहनत की खाता हूँ,
इसलिए निर्भीक मुस्कराता हूँ,
तू मुझे डराने की फिराक में है
या भागने की ताक में है,
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प्रहरी बोला,
सुनो भाई सुनो,
ठीक है तुम कुछ भी हो,
मुझे कोई दिक्कत नहीं,
सामने टीआई साहब बैठे हैं,
उनके पास जाओ कागज दिखाओ,
साहब ने प्रश्न दागा कागज दिखाइए
आरसी प्रदूषण डीएल फिटनेसपत्र लाइये,
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उसने हनक में अपना परिचय सुनाया,
ट्रैफिक निरीक्षक का माथा भन्नाया,
उन्होंने कड़कती आबाज से हुक्म दिया,
रामसिंह क्या इनका अल्कोहल टेस्ट किया,
ये धुत्त नशे में है,
इसका टेस्ट कीजिये
फिर मेरे पास भेजिए,
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अरे सुनिए नेताजी कागज दिखाइए
नही हैं तो चालान कटबाइये,
उसने कहा सुनिए,
मुझे फोन करने दीजिए,
फिर दम हो तो चालान काट लीजिए,
उसने बड़े नेता को फोन घुमाया,
और टीआई को फोन थमाया,
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मैं बोल रहा हूँ विधायक,
जनता का सहायक,
शिष्टाचार बात हुई
छोड़ दो इसको क्यों उलझाए रखे हो,
जाने दो हुक्म पर अमल कीजिये,
टीआई बोला तुम पर तरस आता है,
जो मंच से कानून की बात बताता है,
खुद ही कानून तोड़ना सिखाता है,
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अब तो चालान कट गया है जनाब,
अरे क्यों काटा चालान निरस्त कीजिये,
वर्दी का रौब मत दिखाओ,
बरना देख लिए जाओगे,
नजर नहीं आओगे,
टीआई ने अब और भारी,
चालान बनाया,
आरक्षी मुस्कराया,
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साहब में मान गया,
और ये खादीधारी का लाडला भी,
चालान कैसे कटता है जान गया,
यातायात प्रहरी ने,
भारी भरकम चालान थमाया,
और उसे चलता बनाया,
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वाहन चालकों अगर हम सड़क नियम मान लें,
चौराहे पर खड़े ट्रैफिक प्रहरी का दर्द जान लें,
तो ये यातायात प्रबंधन बखूब हो पायेगा,
अन्यथा जाम का झाम रोज हिस्से में आएगा,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
मानवाधिकार कार्यकर्ता