शेर(हवा का रुख)
【हवा का रुख】
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हवा का रुख कुछ नासाज सा है आज
कल सुनो,
काफी मसक्कत के बाद भी दो जून के
लाले पड़े,
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बड़े ही शौक से चलते हो चम चमाती
सड़क पर,
उस गली की तरफ भी चल जहां दल
दल बहुत है
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तेरे रुतबे के किस्से रोज गूंजते है यहां
वहां ,
कभी फुर्सत निकाल जमीनी हकीकत
भी देख,
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कभी औचक जांच की हिम्मत जुटा कर देख भाई,
फाइलों पर धूल औऱ गरीब की लाचारी समझ जाओगे
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हमें तेरे मुफ्त के तोहफों से सख्त नफरत है जनाब,
रोजगार दे रोजगार दे महंगाई को दूर करके दिखा,
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हमें लाचार और मजबूर ना बना बादशाह,
हम खुद्दार हैं खुद्दार ही रहने में मदद कर,
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हमें हुकूमत से मुफ्त में आटा देकर मजबूर
ना बना,
हमें रोजगार दे दे इतनी गुजारिश है तुझसे हुक्मरान,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर