मुख्यपृष्ठशेरशेर(आवाज़) शेर(आवाज़) 0 Shiv shanker Jha "shiv" नवंबर 05, 2021 【आवाज】-----------तेरी आवाज सिरदर्द बनती जा रही है अब उनके,गुनाह इतना है वस तेरा तूने सच क्यों कह दिया,------------अपनी आवाज को ऊंचा उठाने की जुर्रत कर आदमी,तेरी रूह तुझसे जबाव मांगेगी तू जिंदा रहा कितने वक्त,------------आखिरी सांस भी ना ये जान पाए तेरे दिल का राज,कितना गम दबा कर सीने में चल रहा है मुस्कराते हुए,------------अब हम से और सच ना उगलबाओ कलम मेरी दोस्त,तुझे सब पता है काला पीला किस किस जगह पर है,-----–-----मौजूदा वक्त में ये कैसा शिकंजा है दबाव है मालूम नहीं,आदमी बदहाल है सिसकियों से पर आबाज गले तक नहीं आती,------------दास्तानें बयां करते करते रो पड़ा खुद्दार आदमी,घर में चिराग रोशन करे या दो जून की रोटी लाये,-------------तू जिंदा है तो जिंदा होने की हनक तो दिखा,तुझे जिंदा मान लूं कैसे तेरी जुबान तो गुमशुदा है, ------------कितनी और दौलत बटोरना चाहते हो तुम,चूल्हे से आग भी तू भर ले गया अपने लिए,------------शिकस्त धोखा छल फरेब से लबरेज हो चले हो,तुम बदल गए हो जनाब अब रंगरेज हो चले हो,------------शहर की गलियां उम्मीद लगाएं बैठी रहीं चौकसी की,चौकीदार को आना था मगर वह आया ही नही,------------किस किस की बात किस किस से कहूं मौजूदा दौर,वह सुनने को कान नही रखता और तुम जुबान नहीं,------------तुम सिसकियां और रुंधा हुआ गला लेकर बेशक घूमो,उसे फर्क नहीं पड़ता तेरी उजड़ी हुई बैरंग जिंदगी से,------------सडक के किनारे बैठा हुआ आदमी जार जार रो रहा था,मैंने पूछा तो सदे गले से बोला मेरा विकास देखा है कहीं,------------अदब और हनक दोनों जरूर रखना साथ में आजकल यारो,अदब अकेले से लोग दबते नहीं है शरीफ जान कर,------------ शिव शंकर झा "शिव"स्वतन्त्र लेखकव्यंग्यकारशायर Tags शेर और नया पुराने