शेर(आवाज़)

 


【आवाज】

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तेरी आवाज सिरदर्द बनती जा रही है अब उनके,

गुनाह इतना है वस तेरा तूने सच क्यों कह दिया,

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अपनी आवाज को ऊंचा उठाने की जुर्रत कर आदमी,

तेरी रूह तुझसे जबाव मांगेगी तू जिंदा रहा कितने वक्त,

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आखिरी सांस भी ना ये जान पाए तेरे दिल

का राज,

कितना गम दबा कर सीने में चल रहा है मुस्कराते हुए,

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अब हम से और सच ना उगलबाओ कलम मेरी दोस्त,

तुझे सब पता है काला पीला किस किस जगह पर है,

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मौजूदा वक्त में ये कैसा शिकंजा है दबाव है मालूम नहीं,

आदमी बदहाल है सिसकियों से पर आबाज गले तक नहीं आती,

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दास्तानें बयां करते करते रो पड़ा खुद्दार आदमी,

घर में चिराग रोशन करे या दो जून की रोटी लाये,

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तू जिंदा है तो जिंदा होने की हनक तो दिखा,

तुझे जिंदा मान लूं कैसे तेरी जुबान तो गुमशुदा है, 

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कितनी और दौलत बटोरना चाहते हो तुम,

चूल्हे से आग भी तू भर ले गया अपने लिए,

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शिकस्त धोखा छल फरेब से लबरेज हो चले हो,

तुम बदल गए हो जनाब अब रंगरेज हो चले हो,

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शहर की गलियां उम्मीद लगाएं बैठी रहीं चौकसी की,

चौकीदार को आना था मगर वह आया ही नही,

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किस किस की बात किस किस से कहूं मौजूदा दौर,

वह सुनने को कान नही रखता और तुम जुबान नहीं,

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तुम सिसकियां और रुंधा हुआ गला लेकर बेशक घूमो,

उसे फर्क नहीं पड़ता तेरी उजड़ी हुई बैरंग जिंदगी से,

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सडक के किनारे बैठा हुआ आदमी जार जार रो रहा था,

मैंने पूछा तो सदे गले से बोला मेरा विकास देखा है कहीं,

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अदब और हनक दोनों जरूर रखना साथ में आजकल यारो,

अदब अकेले से लोग दबते नहीं है शरीफ जान कर,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर




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