व्यंग्य💐💐सियासी वादे💐💐

व्यंग्य

💐💐सियासी वादे💐💐

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वादे ही वादे हर ओर गूंजते मुफ्त के वादे,

भांप सको तो भांपो सियासी चालें इरादे,

समझने की कोशिश करो नजर फैलाओ,

बहरूपिये घूम रहे हैं हर ओर सँभल जाओ,

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ये चतुर मौकापरस्त लगते हैं,

वोट के खातिर ही सलाम करते हैं,

जीतने के बाद सारे चेहरे ये भूल जाएंगे,

ना तुम ना वादे ना फिर तेरे ये द्वार आएंगे,

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ये सब गड्डमड्ड चतुर सियासी चेहरे हैं,

दलबदलू कब एक घर एक दल ठहरे हैं

उसूल रिश्ते नाते सबके सब यहाँ बेमानी हैं,

बस एक ही लक्ष्य सरकारी कुर्सी पानी है,

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ताक पर कुछ भी रखना पड़े रख देंगे,

ईमान,सच्चाई,रिश्ता सब नीलाम कर देगें,

एकबार सियासत में चेहरा चमक जाए

चरित्र मित्र उसूल बेशक सब दरक जाए,

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कुर्सी मिलते ही आप माननीय हो जायेगे,

फिर अपना रुआब हनक रुतबा दिखाएंगे

वोटरो मतदान के दौरान जो पैर छुबवाए,

ये तुमसे पांच वर्ष तक चरण धुलवाएँगे

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छुटभैयों के समक्ष जूठन फेंकते रहेंगे,

वे नासमझ इनके समक्ष गीत गाते रहेंगे

आखिर यही तो भीड़ में जिंदाबाद बोलेंगे

यही हैं मेरे अस्त्र यहीं अगल बगल डोलेंगे,

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मांगते मांगते जब हम लायक बन जायेगे

फिर दरबार लगा सरकारी खैरात लुटाएंगे

मगर ध्यान रहें नौकरियां फाइलों में होगी,

हकीकत से कोसों कोसों दूर दूर होगीं,

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अवाम सरल रही वह ये नहीं जान पाएंगी,

सियासी चक्कर में वह फिर छटफटाएगी,

फिर हम महगाई कम करने का झांसा देगे,

या फिर कोई नया मुद्दा खड़ा कर फंसा देगे

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अथवा आखिरी वक्त खैरात भरपूर लुटाएंगे,

सब भूलेंगे जब गेंहू चावल और नोट पाएंगे,

ये भी तरीका है मत खरीदने का समझ गए,

कुछ सो रहे हैं धुंआधार कुछ जग गए,

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जनता ध्यान रखना चयन के वक्त जरूर,

कहीं हंस के वेश में बगला ना जीत जाए,

तौलकर समझकर सोचकर मतदान करना,

हमारे मत के बदौलत दागी ना जीत पाए

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

३१.०१.२०२२ ०२.०१ अपराह्न

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