गजल💐पल भर!!💐

 
गजल

💐पल भर!💐

💐💐💐💐💐💐💐💐

पल भर सुकूं से जीने का जतन कर,

परख,निरख,समझ गौर कर गौर कर,


मेरे प्यारे सुनो जिंदगी जिद नहीं होती,

पता तो है सांस की कोई कीमत नहीं होती,


तल्ख रिश्ते बना के रहे गर ताउम्र तो सुनो,

कफ़न होता है मगर उसमें जेब नहीं होती,


कब किस वक्त जिंदगी फना हो जाएगी,

इल्म है इसकी खबर कानों कान नहीं होती,


दौलत की बदौलत इंसानियत मत भूल,

लूटने की चाहत बिखेर ना दे शूल ही शूल, 


कफ़न अपने लिए कौन ला पाया है बता,

मौत की"सदा"आती नहीं इतना तो है पता,


पल पल रोज रोज कम हो रही है उमर,

तू वहम में है कि मैं तो बड़ा हो रहा हूँ,


मुश्किल से बनते हैं प्यार से सने रिश्ते,

अपनी नासमझी से इन्हें अलहदा ना कर,


बंट गए घर और दौलत कोई बात नहीं,

दिलों में दरार ना आए इसका ख्याल रहे,


अपनी हनक और सनक में मगरूर हुए,

खून के रिश्ते टूटे और दरबदर दूर दूर हुए,


क्या हुआ क्यों हुआ पता करो गौर करो,

क्यों किस बजह से ये रिश्ते चूर चूर हुए,


उन्हें लगता रहा जुल्म मुझ पर हुआ खूब,

कोई और भी है उसका दर्द कौन सुने,


बस एक जिद गलतफहमी में तब्दील हुई

नासमझी से रिश्तों की दौलत काफूर हुई,


अगर वह झांकता अपने अंदर भी एकबार,

ना दरकते ये गुलजार रिश्ते ना होती दरार,


बड़े महीन बारीक धागों से बनते हैं रिश्ते,

बस इक कड़बी लफ्ज से दरकते हैं रिश्ते,


उसे अपना कहूँ या ना कहूँ टेढ़ा सवाल है,

निज स्वार्थ की खातिर मचा भारी बवाल है,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२५.०२.२०२२ ११.५० पूर्वाह्न






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