💐💐कविता💐💐
💐जागने का वक्त है।।💐
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जागने का वक्त है"तुम",
जाग जाओ,
घर बना अपना"निशाना",
जाग जाओ,
हर तरफ उठता धुँआ,
चिंगारियों का शोरगुल,
इस तरफ,
और उस तरफ भी,
चाल गहरी है घनेरी,
समझ जाओ,
सो गए हो नींद गहरी,
जाग जाओ,
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मजहबी चिंगारियां
जो जल रही हैं,
तेरे अंदर मेरे अंदर,
पल रही हैं,
आग का विकराल,
ना ये रूप ले लें,
वक्त रहते भांप लो,
नजरें उठाओ,
सो गए हो नींद गहरी,
जाग जाओ,
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ये हवा बदली,
बदलती जा रही है,
तल्खियाँ क्यों रोज,
बढ़ती जा रही हैं,
आग का मन,
झोपड़ीं को है जलाना,
दहकने से पूर्व ही,
इसको बुझाओ,
सो गए हो नींद गहरी,
जाग जाओ,
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आदमी ही आदमी को,
खा रहा है,
नाम मेरा क्यों उछाला,
जा रहा है,
सोच में है भेड़िया भूखा हूँ,
मै तो आज भी,
मेरे हिस्से का निबाला
"कौन" खाए जा रहा है,
तल्खियों की फसल ये,
बढ़ने ना पाए,
वक्त की आबाज है,
छल भांप आओ,
सो गए हो नींद गहरी,
जाग जाओ,
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फिर नहीं कहना
"कलम" बोली नहीं,
फिर नहीं कहना,
"परत" खोली नहीं,
है सियासी खेल,
मजहब को लड़ाना,
आदमी के बीच,
रिश्तों को घटाना,
बहकना मत दहकना मत,
है सियासी चाल सारी,
हम नहीं भटकें ना अटकें,
मित्र प्यारे सँभल जाओ,
सो गए हो नींद गहरी,
जाग जाओ,
जागने का वक्त है "तुम"
जाग जाओ।।
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१९.०२.२०२२ ११.४० पूर्वाह्न