गजल
💐चश्मे की नजर💐
……..
इधर चश्मे की नजर अब कमजोर हो
चली है,
दरख्तों के साये में धूप बहुत जोर हो
चली है,
……….
इतनी नफरत इतनी दूरियाँ किस किस वजह
से हुई,
नब्ज टटोलो तो सही कमजोरियां किस वजह
से हुई,
……….
नश्तर बहुत कमजोर हो चला है तेज धार
के बाद भी,
बजूद किसी की मुट्ठी में फंस गया ताकत
के बाद भी,
……...
दरिया बूंद बूंद को प्यासी है पानी के
बाद भी,
किनारे रूठ गए हैं मिलते नहीं मुद्दत
के बाद भी,
……….
सलीके से अदब से हौले से कदम बढ़ाना
सीख लो,
परख परख के ही सही पर जिंदगी जीना
सीख लो,
……….
तू उनकी छत बनाने की जिद करता तो
मानते,
उजाड़ कर हँसता है मकान संबारता तो
जानते,
………..
खूब दौलत की भूख बढ़ाता गया तेज
हर रोज,
कफ़न में जेब सिलबाता तो बादशाहत
मानते,
………..
सबक मुफ़्लिशी में ही मिलता है सुन मेरे
अजीज,
दगा.दुश्मनी.तल्खियाँ और उधड़ी फ़टी
कमीज,
………..
तेरी सारी हदें वे बुनियाद लगती है गुरूर
में तर सुन,
तेरी जड़ वेहद कमजोर है कुछ नजर कर
गौर कर,
………
दरख्त को अब धूप लगती है अपने ही
साये में,
इस खौफजदा मंजर का राज क्या है
खबर नहीं,
………
खुद की ताकत दौलत पर ही एतबार
करना,
सुनो किसी और के बूते कभी मत रार
करना,
……....
दिखाबा,छल,कपट,धोखा ये क्यूँ बढ़
चला है,
आदमी आदमी से यूँ ही क्यों चिढ़
चला है,
……….
कोई भी अपने को कसूरवार मानता ही
नहीं,
फिर कौन कसूरवार है इन तल्खियों को
लाने में,
………
हवा खामोश है देखकर अपने ही खिलाफ
हवा,
जहर,कहर,लहर,सफर,सिफर और क्या
क्या,
………
मोहब्ब्त इश्क वफ़ा सब में मिलावट क्यों
हो गयी,
लहू के रिश्ते लहूलुहान हुए तकरार क्यों
हो गयी,
……….
सड़क पर हर ओर भीड़ ही भीड़ नजर
आती रही,
इक आदमी की सांस इस भीड़ के बाद
भी जाती रही,
……….
शहर में खूब आदमी तो थे इरगिर्द घूमते
हुऐ,
मगर एक आध ही आदमियत लिए नजर
आया,
…….
शिकस्त शिकायत सिलबट का दाग बहुत
गहरा है,
किस किस की बात करूं हर ओर जख्म
गहरा है,
……….
कोई बात नहीं मुलाकात नहीं महफ़िल
सजी रात नहीं,
दिलों में इश्क नहीं तो सुन फिर मिलने
की बात नहीं,
……….
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२८.०२.२०२२ १२.३८ पूर्वाह्न मध्यरात्रि
Great post 👍👍👍👌
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