शेर★बस इतनी सी अदाबत!★

 

💐💐💐शेर💐💐💐

बस इतनी सी अदाबत!


बस इतनी सी अदाबत है मेरी इससे,

ये मुझे देखकर झुकता नहीं सहम कर,


इसे कुरेदकर देखता हूँ कितना बजूद है,

इसकी मिट्टी कैसी है कितना मजबूत है,


वह चाहता रहा उम्र भर जमाने भर रहूँ,

फखत मेरा नाम बजूद रहे मैं रहूँ ना रहूँ,


झुका कर इसको मैं छा जाऊँगा जमाने में,

आदमी लगा है बस आदमी को झुकाने में,


उसकी जिद है यह झुके और गिड़गिड़ाए, 

मैं कहूँ तब हंसे मैं कहूँ तब सिर झुकाए,


मेरी हुकूमत हनक दौलत का जोर तो दिखे,

ये टूटता हुआ मेरे दर पर कमजोर तो दिखे,


मौत की सिलबटें पड़ने लगी हैं चेहरे पर,

झुर्रियां कह रही हैं चमक अब मर चुकी है,


उसकी आदत ही नहीं रही गले लगाने की,

दूर जा बैठा है हिम्मत ही नहीं पास आने की,


संजीदगी से रहो फिक्र किस बात की है,

चांदनी की चमक फखत रात रात की है,


आओ फूलों का व्यापार करते हैं,

गुलाब सी महक हो करार करते हैं,


हर ओर बंदूको के साये दिख रहे हैं,

बजूद की भूख में आदमी पिस रहे हैं,


पहरेदार ही दीबार में नकब लगाता रहा,

रोज निर्दोष पर दोष आता रहा,


हवा जोर और जोर से चलने लगी है,

घरों से छत उड़ाने की भूख पलने लगी है,


खून की रंजिश खून से ही बढ़ चली है,

आब को घर जलाने की सनक चढ़ चली है,


समंदर भारी गुमान से तरबतर हो चला है,

उसे ख्याल नहीं किनारों में दरार हो चला है,


खूब झुको अदब करो अच्छे के सामने,

गुरूर बाले के सामने झुकना तौहीन से 

कम नहीं,


शिकायत मत करो उससे जो समझे ही

नहीं,

उससे तौबा कर लो वक्त के साथ वक्त 

पर,


वह अपनी आदत से उलट होता जा रहा 

है,

गलत को गलत कहने की ताकत खो रहा

है,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०४.०३.२०२२ ०९.१७ पूर्वाह्न








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