मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ !!
मैं यंत्रवत गतिमान हूँ,
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ।।
दृष्टि दोष से ग्रसित नकाबों की जद में,
मैं स्वयं में स्वयं हीं मगन विशिष्ट महान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
मेरी आँखें देख नहीं पातीं अन्याय,
साफ साफ गलत सही भलीभाँति।।
मैं दृष्टिहीन तो नहीं हो रहा कहीं,
परिणाम के उस वार से अनजान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
अब मेरे कदम मेरे इशारे नहीं मानते,
चलते हैं और किसी के कहने पर।।
भुजाएं नहीं फड़कती अन्याय देखकर,
मैं खुद में खोया आनन्द हूँ पहचान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
मुझे सुनाई भी नहीं देती चीत्कारें क्रंदन,
शायद मेरी श्रवण शक्ती खो रही है।।
मुझे अब झकझोरती नहीं सदाएं आहें,
मेरे अंदर की मानवता क्षीण हो रही है।।
मुझे ज्ञात नहीं कब मैंने सच बोला हो,
लोगों के सामने या पीठ पीछे या स्वयं से।।
किसी आराध्य के सम्मुख या पीठ पीछे,
मैं अपने में हूँ कैद,कैद में मुग्ध महान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
छद्मवेश मेरी विशेषता है विशेष गुण है,
भृमित करना फँसाना योग्यता सद्गुण है।।
दौलत की भूख,दया धर्म करुणा स्वाहा,
मैं बस भूखा जीव हूँ गिद्ध सी उड़ान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
मेरी क्षुधा दिन प्रतिदिन मुझे खा रही है,
अंदर के ह्रदय को दया को मनुजता को।।
मेरी आँखें अब आँसू नही देख पातीं,
मैं मृत्यु पर शोक नहीं कर्कश मुस्कान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
झूठ बोलना गुणगान करना आराधना है,
हाँ में हाँ बोलना यही श्रेष्ठतम साधना है।।
इसी विधा से पाता हूँ टुकड़े रोटी इज्जत दाम,
शरण नकाबों के होना बस मेरा काम मेरा काम।।
नाटकीय ढंग से कभी इंसान बन जाता हूँ,
तदुपरांत उसी कीचड़ में मिल सन जाता हूँ।।
मंचों से सभाओं से मोह लेता हूँ लोगों को,
मैं कलुषित मन नकली चेहरे की खान हूँ।।
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
मैं झूठ बोलने लगा हूँ वह भी खुलकर,
इसके उपरांत भी मैं विशेष हूँ महान हूँ।।
देखो मुझे पहचानो मुझे मैं कौन हूँ?....
मैं हूँ मैं हूँ मैं हूँ मैं हूँ…अरे!मैं हूँ….
मैं आधुनिक मैं आधुनिक इंसान हूँ….
इंसान हूँ……इंसान हूँ…..
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१५.०४.२०२३ ११.१५ पूर्वाह्न(२९३)