कविता
अलग थलग !!
हवा झूठ को पोषित करती,
बेखटके इस काल में।।
सदकर्मी निष्कपट सत्यव्रत,
फँसता जाता जाल में।।
स्वांग रचाके खूब फँसाते,
अपने माया जाल में।।
लूट झूठ का बढ़ता धंधा,
दिन दूना हर साल में।।
सच सच बोलोगे तो डोलोगे,
अलग थलग संसार में।।
पग पग पर ठोकर खाओगे,
शहर गांव बाजार में।।
हाँ में हाँ बोलो और खाओ,
रबड़ी पूड़ी थाल में।।
झाड़ो इज्जत को झटके से,
करो मजे हर हाल में।।
चेहरे नकली रिश्ते नकली,
घूमें नकली खाल में।।
आज कल्ल वे मौज मारते,
छेद करें जो थाल में।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२४.०४.२०२३ ०८.१३ पूर्वाह्न(२९७)