कविता
कोरोना जब ख़त लाया था
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कोरोना जब ख़त लाया था,
हमसे कुछ कहने आया था।
लेकिन हम ठहरे महामानव,
पत्र बांच कर बिसराया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
रक्त के रिश्ते मित्र के रिश्ते,
स्वजन सगे अपनों के रिश्ते।
घणी प्रेयसी भार्या तनया,
रंग नजर खुलके आया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
सम्बन्धों के बन्ध टूट गए,
बने सभी अनुबंध टूट गए।
दूर हुए अश्पृश्य समझकर,
खेल मदारी दिखलाया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
अपनों ने अपनों को छोड़ा,
बीच मार्ग पर नाता तोड़ा।
उठा उठा ले जा जा इसको,
दृश्य देख हिय हुलसाया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
बंद हो गए चौखट घर के,
हुए कपाट बंद मन्दर के।
सब थे बंद खुला था मरघट,
इसने साथ निभाया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
टूट रहे थे नाते बस झट,
दूर खड़े दिखते थे जड़वत।
मरघट द्रवित ह्रदय से पूरित,
सबको गले लगाया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
समय पत्र करता है प्रेषित,
नहीं समझता मनुज क्षुद्रमत।
अंधा है हिय का नर अंधा,
कितना कितना चेताया था।
कोरोना जब ख़त लाया था।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२७.०४.२०२३ १२.०१ पूर्वाह्न (२९८)