कुंडलियां
// गुदगुदी ०५ //
//०१//
मेकप सैकप के लिए,गई बजार सिहाय।
ब्यूटीपार्लर पर खड़ी,महिषी गई दिखाय।।
महिषी गई दिखाय,लुगाई भई भौचक्की।
घुसी पार्लर जाय,दिख रही हक्कीबक्की।।
आधा आधा इंच फिर,मैकप लियौ कराय।
ऐसी फिरि दीखन लगी,बुढ़ौ हू गश खाय।।
//०२//
रेबड़ियों का क्या कहें,सैत सीं मीठी होंय।
कर्जा मर्जा सो बढ़ै,शुगर बढ़त फिरि रोंय।।
शुगर बढ़त फिरि रोंय,जि कुस्सी गोली जैसी।
चपल नारि के,शब्द नयन और बोली जैसी।।
मुलजिम और मुलाज़िम,मिलकें मजे उड़ाते।
मूलमंत्र इक सीख गए,बस राजा के गुन गाते।।
//०३//
इलेक्शन सलेक्शन रिएक्शन,जबरदस्त गठजोड़।
दददू कौ आदेश भयौ,लै आवहु सब तोड़।।
लै आवहु सब तोड़,दंड भय दाम दिखाना।
कैसेहूँ हुइ जाय,हमें है अपनौ काम चलाना।।
महामिशन कौ रिएक्शन,होबन लागौ जोर।
महा भ्रष्ट कल तक लगे,स्वागत भा पुरजोर।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१९.०२.२०२४ ०१.००अपराह्न (३९१)