शेर(घरों के लिए चिराग मयस्सर नहीं)

     


            
।। चिराग ।।

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घरों के लिए चिराग बमुश्किल मयस्सर

 हो रहा है,

सारी कायनात को जगमग करने का 

गुमान है तुझे

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हुक्म दे अपने मातहतों को एक बार

 ईमान से सुन,

फाइलों की बाजीगरी से दूर हों सच को

दिखा दें,

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तेरे आने की आहट कान में पड़ती है जब

इनके,

रात ही रात में सड़कें बना देते हैं जाग कर

मातहत,

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हम लोग क्यों झुकें तेरे दर पर जाकर 

मांगने वाले,

वोट मांगते वक्त तू मेरे द्वार पर घुटनों के

बल खड़ा था,

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वोट से चोट बखूवी कैसे हो सलीका

 मालूम है हमें,

अब और किसी सेवक को गद्दी देने की धुन सवार है,

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हमें कहाँ इल्म था हम इतने बदतर 

हालात में होगें,

अपनों की आय हजारों गुना बढ़ा दी

 घर हमारे जला,

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भूख अपनी तो दबा ली घुटनों को पेट की

ओर कर,

मगर बच्चों के वास्ते खुद्दार भी झुक गया

सिर झुका,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

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