कविता
तेल की धार
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तेल और तेल की धार देखिए, महंगाई हर द्वार देखिए,
चहुदिश हाहाकार देखिए,
रोज नए बेरोजगार देखिये,
दर्द व्यथा की मार देखिये,
चौपट नित व्यापार देखिये,
ब्याज कर्ज दुत्कार देखिये,
महंगाई की मार देखिए,
महंगाई की मार देखिये,
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बढ़ता भ्रष्टाचार देखिए,
चौपट सब बाजार देखिये,
घर घर बेरोजगार देखिए,
ढुलाई भाड़े की मार देखिए,
लूट झूठ का प्यार देखिये,
महंगाई की मार देखिए
महंगाई की मार देखिए,
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सरसों घानी तेल देखिए,
मिलावटों का मेल देखिये,
सरदारों का खेल देखिये,
आटा चीनी दाल देखिए,
छीना झपटी रोज देखिए,
सरदारों के भोज देखिये,
चौपट घर व्यापार देखिए
महंगाई की मार देखिए,
महंगाई की मार देखिए,
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सरदारों के महल देखिए,
गाड़ी घोड़ा चाल देखिए,
होते मालामाल देखिए,
जनता को वेहाल देखिए,
अब तो कुछ सरकार देखिए,
महंगाई की मार देखिए
महंगाई की मार देखिए,
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प्लेटफॉर्म की टिकट देखिए,
घनी विवशता विकट देखिए,
नेत्र खोलकर दूर देखिए,
आसपास और निकट देखिए, अपने दिल की ओर देखिए,
शिक्षा में व्यापार देखिए,
छीना झपटी रार देखिए,
महंगाई की मार देखिए,
महंगाई की मार देखिए,
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महंगाई घनघोर देखिये,
कुछ तो हमरी ओर देखिये,
निष्ठा से एकबार देखिये,
हम भी चौकीदार देखिये,
झूल रहे कुंठा के मारे,
फंदे पर हर रोज देखिए,
महंगाई की मार देखिए,
महंगाई की मार देखिये,
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लेखक शिव की कलम देखिये, पैनापन और धार देखिये,
मानवता से प्यार देखिये,
बढ़ता बेरोजगार देखिये,
युवा शक्ति लाचार देखिये,
घोर उदासी हार देखिये,
बढ़ते नए नए रोग देखिये,
राजाओं के भोग देखिये,
काम धाम व्यापार देखिये,
चहुदिश हाहाकार देखिये,
महंगाई की मार देखिये,
महंगाई की मार देखिये
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर