।★।काव्य रचना।★।
★★राजा बैठा राजभवन में★★
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राजा बैठा राजभवन में जनता मांगे
पानी,
तू भी घायल मैं भी घायल तेरी मेरी
यही कहानी,
कौन सुनेगा किसे सुनाए किस के दर
पर हाथ बढ़ाएं,
किससे बोलें मन की बात दर्द भरी
पीड़ा की बानी,
राजा बैठा राजभवन में जनता मांगे
पानी,
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द्वार खड़ा एक भिक्षुक बोला अन्न
मुझे दो माई,
गृहस्वामिनी ग्रह से बोली रोटी अन्न
न घर में पाई
दुर्दिन आये काया खाये कहें किसे
निज हानी
राजा बैठा राजभवन में जनता मांगे
पानी
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रिक्शा वाला,भिक्षा वाला,पुआ पकौड़ी,
आलू वाला,
सड़क किनारे चाय वाला निजी नौकरी
करने वाला,
सभी विवश अब कहें किसे मुंह पर खुद
डाला ताला,
जिसको हमने राज दे दिया वही नहीं अब
सुनने वाला,
रूखे सूखे स्वर से निकले अच्छे दिन की
डगर सुहानी,
राजा बैठा राजभवन में जनता मांगे पानी
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रोजगार दिलबा दो भैया डूब रही अब
अधर में नैया,
सब करके बादे भूल गए अब दिखे न
कोई छैया,
"शिव" सच को आंच लगी अब जाती
कोई न डाले पानी ,
राजा बैठा राजभवन में जनता मांगे पानी
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खूब बढाया मान राष्ट्र का घर की तरफ
भी नजर घुमाओ,
हम भी तेरे अपनो जैसे एक बार तुम
इधर भी आओ,
बेकारी को लाचारी को दूर हटा कर तुम
दिखलाओ
हम भी राष्ट्रप्रेम से पूरित हम भी सच्चे
स्वाभिमानी,
राजा बैठा राजभवन में जनता मांगेपानी
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
Aaj ki samasyaon ki dikhlati ye kavita kafi sateek hai aaj kal ki politics ka yhi kam hai .
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