शेर(कारबां)

                     
   (कारबां

तू कारवाँ और सफर साफगोई से चल

धूल की आदत है सिर पर सवार होने की,

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जिंदगी गजब की चाल में माहिर किताब 
सी है,
यहां हर एक पन्ना बड़ा ही साजिशी 
सा है,
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नजरों को झुकाने की आदत अब छोड़नी
होगी,
कभी कभी ज्यादा अदब भी नुकसान
देह है,
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हर ओर हर मंजिल पर मोहरे लिए खंजर
खड़े हैं,
ताक में है पैबस्त खंजर कैसे करें सीने के
पार,
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यहाँ तेरे कदमों की ताकत गैर के बूते नही बढ़नी,

       तू अपनी ताकत को बढ़ाने की जिद्द

जारी रख,

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कोशिशें जारी रहेगीं साजिशों की
पुरजोर,
तू अपनी पैरबी कमजोर ना कर 
देना हारकर,
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सिंह सी नाद बना कर रख अदब के
साथ,
सफर की हर डगर पर नजर रखना
जरूर,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
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