(जीवन का संसार)
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यही है अद्भूत जीवन का संसार,
कभी नेह कभी बैर कभी दुलार,
समय की चाल बहुत निराली,
कभी जेब भरी कभी खाली,
जीवन भी कभी पतझड़,
कभी धूल भरी अंधड़ ,
कभी दाल घी भर,
कभी कभी कंकर,
कभी हर पत्थर शंकर,
कभी योग्यता तोड़ती पत्थर,
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कभी स्नेह की छाया,
कभी धूलधूसरित काया,
कभी घर में अपार माया,
कभी कालिमा की छाया,
कभी सहोदर अपार नेह,
कभी अपने अपने गेह,
कभी मस्त मौला जीवन,
कभी उधेड़बुन की सीवन,
कभी चिंताओं की मार,
कभी घर में मची रार,
कभी आपसी घना दुलार,
कभी नकली सा प्यार,
यही है अद्भुत जीवन का संसार
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फिर पुनःजीवन में बसन्त सी हरियाली,
यही है जीवन की चाल अजब निराली,
कभी आपकी हर बात मुस्कराते
टाली जाए,
समय विपरीत हो तब वही बात
निकाली जाए,
खूब घनघोर अपमान की वरसात हो,
जब हमारा तुम्हारा समय विपरीत हो,
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यही पहचानने की फिराक में हूँ
कब वह रात हो
और अपमान तिरस्कार की घन
घोर बरसात हो,
हम तरबतर होकर अपमान से सरा
बोर हो जायेगे,
सुना है इस जलप्लावन के बाद हम
इंसान हो जायेगें,
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एक मजबूत परिपक्व समय के
थपेड़ो को झेलने बाले,
धीर गम्भीर मजबूत मुश्किलों से
खेलने बाले,
सुना है जब समय विपरीत हो तब अपने
भी साथ छोड़ जाते हैं,
अरे नहीं वह साथ नही आपके हौसले को
साथ छोड़ जाते हैं,
ताकि आपको इंसान बना सके,
आप अपनी ताकत जान सके,
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हार कर नहीं डटकर मुकाबला करेगें,
हर विपरीत चाल काल का सामना करेंगे, मुश्किल में साथ छोड़ने वालो तुम्हे
दिल से आभार करेगें,
हार कर कब मिली है मंजिल मेरे साथी, मजबूत इरादों की बुनियाद रख मेरे साथी, जीतना है हमको हर मुकाबला धुंआधार,
यही है अद्भुत जीवन का संसार
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार