शेर(स्याह सन्नाटे की आहट)

   


-----------------------------------------

स्याह सन्नाटे की आहट क्या डराएगी मुझे,

मैं काली रात की हुँकार का इक रूप हूँ,

-----------------------------------------

जिद है समंदर के किनारे तोड़ने की शिव,

मैं अब आंधी से बबंडर बन चला हूँ,

-----------------------------------------

हवा जहरीली है वेशक मेरे माफिक

आज कल ,

मगर वह जान का जोखिम नहीं ले

पायेगी,

------------------------------------------

साजिशों का दौर मुझको भाने लगा है

अब,

वे साजिश में अपनी ताकत खपाते जा

रहे हैं,

--------------------------------------------

अर्दली तो नहीं होगा कभी "शिव" गैर

चौखट का,

डर से दर पर जो सिर झुके वह सिर

नहीं होता,

--------------------------------------------


शिव शंकर झा"शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार


-------------------------------------------

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !