गीत(बादल से प्रेमिका का संवाद)

 


★बादल से प्रेमिका का संवाद

                विरह गीत

               ----------–-

बादल की प्रेयसी बोली

अपनी लट खोली

श्रंगार रस की

मूरत सी

तुम बड़े वेवफा हो 

क्या मुझसे खफा हो,

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तुम्हारा 

ना आने का समय

मुकर्रर

ना जाने का

भिगाया और चले गए,

सौतनें चिढ़ाती हैं

मंद मंद मुस्काती हैं

मुंडेर पर गुनगुनाती हैं

प्रिये बादल तुम्हें रिझाती हैं

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तुम आते हो कभी कभी,

केवल और केवल गरजते हो,

कभी कभी प्यास बुझाते हो,

घनघोर बरसते हो,

नकचढ़ा आशिक है तू

बहुत सताते हो

याद आते हो

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तुम्हारे जाने के बाद,

फिर तेज धूप की चुभन,

बदन

जलाती है,

बिल्कुल सरकारी योजनाओं की तरह,

कब तक छिपाऊँ 

किससे 

कहूँ विरह,

मेरे हमदम मेरे महबूब आ जाओ,

बांहों में समा जाओ

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याद अब अधिक आती है,

ये सौतन धूप खूब जलाती है

चिढ़ाती है,

अपने जेठ का गुरूर

दिखा दिखा मुस्कराती है,

तेरा साजन,

परदेशी हो गया सुन री सुन,

अकेली बैठ कर नए नए ख्वाब बुन,

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तेरा बादल खादीधारी हो गया है शायद,

होगा कहीं सौतन की मदहोश साया में

या फिर कहीं,

भ्र्ष्टाचार छल से कमाई माया में,

गलबहियाँ डाले होगा,

फिर किसी प्रेयसी से वादा करेगा,

और फिर पूरा का पूरा अधूरा करेगा,


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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