"बेटियाँ"
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पावन नदी की तीव्र धारा सी
बहें नित बेटियाँ,
पढ़े आगे बढे नाम नित रोशन करें
प्रिय बेटियाँ,
हों अगर दुश्मन के सम्मुख,
तब तीक्ष्ण प्रहार सी हों,
रक्तरंजित कटार सी हों,
आग की हुंकार सी हों,
काल की ललकार सी हों,
शेर की सवार सी हों,
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गर कोई दूषित नजर डाले तुम्हारे मान पर,
तब काल के भी काल से
विकराल सी हों बेटियाँ,
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संसार में माँ बाप का जो
नाम कर दें,
वे सदा ही स्वर्ण पन्नों में रहेगीं बेटियाँ,
करें जो मान भंजन
मातपितु और ग्राम का,
वे सदा अध्याय काले में रहेगीं बेटियाँ,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार