**मोहब्बत**
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बेइंतहा प्यार की तौहीन ना कर हुस्न की चमक
के गुरूर में,
रंग ढलना तो है एक दिन दिल तोड़ने की जिद
ठीक नहीं,
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प्यार,इश्क,मोहब्बत पर लुटने की उम्र महीन
धागों की मेहरबानी है,
गर ये सुनहरे रेशमी ख्बाव के धागे टूटे तो दिल,
दिल नहीं रहता,
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कच्ची उम्र की दहलीज पर इश्क के
जाल में ना आ,
ये बड़ी जालिम मोहब्बत है उम्र की
बंदिश तोड़ देती है,
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किताबों से बेपनाह प्यार के दौर में
इश्क में ना उलझ,
ये बहुत शातिर शिकारी है निकलना
मुमकिन नही दोस्त,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
08.10.2021 10.37 am