कहानी
।।रोमांचक दौड़।।
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ये कहानी हमारी भी हो सकती है तुम्हारी भी, विकास की अंधी दौड़ की अबूझ पहेली फाइलों पर फर्राटा भरते हुये विकास की धावनगति आम गॉव, गरीब, युवाओं को क्या दे रही है जिसमें प्रमूख है हताशा,अवसाद,आत्मग्लानि, बेवसी, सिर चढ़ बोलती बस्तुओं की मूल्यबृद्धि और अनेकानेक असाध्य समस्याएं आह और कराह की अंतहीन दास्तां.
इस कहानी के माध्यम से लेखक जगदल भैया जैसे अनेकानेक योग्य युवाओं बेरोजगारों की व्यथा को दृष्टि देने का प्रयास कर रहा है जो सरकारी नीतियों के मायाजाल में जीवन की सतत यात्रा पथ को वाधित कर रहे हैं,
अब हम जगदल भैया से रूबरू होते हैं (यानी हमारे गाँव का मजदूर भैया)एम ए इंग्लिश और अन्य डिग्रीधारक खुद को बताते थे फर्राटेदार इंग्लिश बोलते थे लेकिन रोजगार में भ्रष्टाचार की त्रासदी उनकी योग्यता निगल गयी उन्हें रोजगार ना मिल सका,नौकरियां कागजों में निकलती हैं प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं लेकिन उसमें से आधे से कहीं ज्यादा सिस्टम की लचर व्यवस्था के चंगुल में फंसकर जांच पर जांच की सांप सीढ़ी रूपी खेल में फंस जाती हैं और लटक जाती योग्य मेहनतकश युवाओं की विकास यात्रा अंतहीन मार्ग में,नौकरियों के अधर में लटकती तलवार व्यवस्था की खामियां उन्हें एक क्रांतिकारी जनयात्रा की ओर बरवश स्थापित कर देती हैं फिर वही युवा अपनी कलम अपनी वाक्पटुता के बल पर एक नया अध्याय स्वतः लिखते हैं सरकारी मोहपाश की बेड़ियों से स्वतन्त्र ,
कभी कभी जब उन्हें अयोग्य भृष्ट सरकारी कार्मिक मिलता,जो सिर्फ फाइल कांख में दबा कर अपनी योग्यता,उच्च शिक्षा का दम्भ भरता हुआ दृष्टगोचर होता और दुर्भाग्य से तब कहीं उसकी आंखे दो चार जगदल भैया से हो जाती, तो जान लो उस फ़ाइल सम्भालक की बखिया उधड जाती।
तब जगदल भैया उसकी आंग्लभाषा में रगड़ाई कर देते कानून से सम्बंधित विभागीय शब्दों के मायावी पिटारे को खोल देते औऱ उसे अपने ज्ञान से इतना पेलते इतना पेलते जब तक कि वह निरुत्तर न हो जाता,ये उनका प्रतिरोध करने का तरीका था,या यूं कहें उन्हें प्रतिशोध की धधकती ज्वाला को शांति करने का माध्यम मिल जाता ऐसा महा अवसर उन्हें आत्मानन्द से दीप्त कर देता,
क्योंकि उन्हें योग्यता के बाद भी सरकारी नौकरी नही मिली थी,जब वे उस सरकारी नौकर को परास्त कर देते तब गॉव बाले कहते जगदल तुमने कमाल कर दिया तुम तो बड़ी ऊंची चीज हो वेशक तुम मजदूर जैसे लगते हो लेकिन कमाल के हो तब जगदल भैया कहते योग्यताएं सिर्फ और सिर्फ नवीन धवल वस्त्रों में या यूं कहें शूटबूट में हीं नहीं होती योग्यताओं का मूल स्थान तो गरीब की मेहनत से अर्जित शैक्षिणक ज्ञान में होता है,और हाँ कभी किसी को उसकी वेशभूषा भावभंगिमा देखकर अयोग्य सुयोग्य का गणित फिट मत कर देना कभी कभी जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं यही है सामाजिक दृष्टि दोष।
ठीक है भैया राम राम सा अब कलेऊ करने जाना है जगदल भैया ने कहा और वे आगे बढ़ गए,
जब वे किसी अयोग्य सरकारी कार्मिक को परास्त कर देते अपनी मेधा और योग्यता से वह दिन उनका जश्न का दिन होता,और खुलकर हंसते मुस्कराते और मस्त हो जाते,
वह होली में फाग गायन में भी महाकुशल थे, जब वह किसी सरकारी कार्मिक की हरा देते उस दिन मानों वह विजयरथ पर निकल रहे होते,मानो वह उसमें सवार हों,
एक दिन वह हडबडाये से भड़भड़ाये से पसीने से लथपथ सिर पर बंधा अंगोछा धूल की निरन्तर पड़ती थापों के कारण अंगोछा सलबटो से सजा हुआ जान पड़ता था ऐसा लगता था मानो उनके पीछे गांव का पसूआ कुत्ता पड़ गया हो ये कुत्ता भी मलमस्त अलमस्त मिजाज का ही था।
दगरे के रेत में चारों पैरों को घुसेर के अपनी दुम को छुपाता हुआ नकली नींद के आगोश में रहता। उस दिन उसकी नजर में जगदल भैया आ गए और पड़ गया पसूआ उनके पीछे आज उन्हें जान बचाने से ज्यादा सफेद पाजामा, घुटन्ना बचाना ज्यादा जरुरी लग रहा था।
जो अब नाम का ही सफेद शेष था उस पर लगता था स्त्री(प्रेस) कभी मेहरबान ही नहीं हुई सिलबटों ने स्थायी आरक्षण प्राप्त कर लिया था वे पाजामें को छोड़ना ही नहीं चाहती थी शायद उस पाजामें के बदौलत ही उनकी पहचान थी शायद सिलबटों का अपना कोई ज्ञानकोष ना था वह पाजामें की शरणागति थी,
जगदल भैया की वही एकमात्र पाजामा और वन्डी, घुटन्ना, और कुर्ता ही उनकी अकूत सम्पत्ति थी,आज जगदल भैया को खुद कटने से ज्यादा पाजामा के फटने का डर था पसूआ कुत्ता उनके पीछे धावक की तरह गतिमान
था ।
उस समय जगदल भैया की गतिसीमा को आंकना बड़े बड़े गणितज्ञों के वश की बात न थी।वे बहुत तेज कदमों से भाज रहे थे, पीछे पीछे पसूआ भी पूरी शक्ति के साथ हमलावर था,आज का मुकाबला मानव सभ्यता का एक वेहद रोमांचक मोड़ था, पसूआ दोनों पैरों के बल से इतना तेज भाग रहा था मानो उसके समक्ष कोई अजनबी हो,पसूआ सदा ही जगदल के द्वार पर रोटी का निबाला खाता लेकिन उस दिन उसकी मति मारी गयी,मानव और कूकर की दौड़ देखने लायक थी हारना कोई नहीं चाहता था।
अगर मानव हार जाता तो आज उनका एकमात्र पजम्मा फट जाता और आबरू सम्मान हट जाता दौड़ निर्णायक कब होगी पता नहीं, दौड़ते दौड़ते गांव के प्रवेश द्वार के दगरे से सटा हुआ नाला पड़ गया,अब जगदल भैया असहज हो गए तत्काल मन ने निर्णय लिया कूद जाओ नाला,अन्यथा पसूआ से नहीं बच पाओगे ऊपर चढ़कर रोथ रोथ(भमोर भमोर) के खायेगा.पीछे भयभीत नजरों से देखा तो पसूआ भागा चला आ रहा था,जगदल भैया ने आव न देखा ताव लगा दी पूरे वेग के साथ छलांग नाले में नाला तो फांद गए.
लेकिन जिसका डर था वही हुआ पजम्मा और घुटन्ना झर्र की आबाज के साथ जंघाओं के बीच से फट गया,कुत्ता पीछा छोड़ने के मूड में न था.अब अंतिम पड़ाव था जंग जीतने का,सामने गॉव के प्राइमरी स्कूल की पुरानी आठ नौ फुटी दीवार आ गयी,अब जगदल भैया जीत की मुद्रा में दिखे पलक झपकते ही दीवार फांद गए और चढ़ गए छत्त पर,अब पसूआ की हार निश्चित थी लेकिन वह भी ठेठ गांव का देशी कुत्ता था, हार कैसे मान लेता।
गॉंव के किसान मजदूर के यहां का ईमान और मेहनत का निबाला जो खाता था, पसूआ भी दीवार को फांदने में सफल हो गया किंतु छत्त पर न जा सका,
अब दोनों का मुंह देखने लायक था,जगदल भैया अपना पसीना पोंछते पोछते अपने अर्ध विदीर्ण पजामे को कातर दृष्टि से देख रहे थे,उधर पसूआ अपनी लपलपाती जीभ से लार टपका रहा था,
हमारी नजर में विजयी कौन रहा ये सुनिश्चित न हो सका, क्योकिं पशु होने के बाद भी पसूआ अपने लक्ष्य को भेदने के लिए प्रयासरत रहा, लेकिन हारता न दिखा,जगदल बहुत दुखी होते हुए घर आये और अपने गॉव के एक मात्र लेखक शिव से बोले भैया इस कुत्ते ने मेरा बना बनाया विकास फाड़ दिया हमारे पास पूरे जीवन की कमाई यही तो लत्ते कपड़े से बने वस्त्र थे,
यही तो हम गरीब मजदूरों का विकास
है अब हमें नहीं लगता हमारे पास दुबारा पाजामा घुटन्ना इस साल आ पायेगा,
इस कहानी के माध्यम से लेखक मानवीय जीवन की भागदौड़ भरी जिंदगी को कलमबद्ध करते हुए हर उस जगदल की व्यथा बता रहा है जो जीवन पर्यंत भागता रहता है लेकिन जब देखता है मुड़कर तब उसे वही विकट समस्याएं, लाचारी, शोषन,भ्र्ष्टाचार,बेरोजगारी, महंगाई,वादाखिलाफी और भृष्ट राजनीति रूपी पसूआ जीभ लपलपाता हुआ दृष्टगोचर होता है।
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर