लेख( लोक आस्था का पर्व छठ)

 


💐💐लेख💐💐

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लोक आस्था का पर्व छठ

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आदिदेव भगवान भास्कर को समर्पित लोक आस्था के महापर्व छठ का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है आइये मेरे साथ इस समग्र लेख के द्वारा जानते है छठ पर्व का प्रारंभिक इतिहास एक पौराणिक कथाओं मान्यताओं के आधार पर महत्व…..

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महत्वपूर्ण तथ्य

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★छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है चैत्र मास और कार्तिक मास में, 

★अस्त होते सूर्य और उदय होते सूर्य की की जाती है उपासना, 

★फल फूल अन्न दूध से की जाती है पूजा,

★शुद्ध वैष्णव भोजन का प्रचलन,

★मिश्र की सभ्यता में भी मिलता है सूर्य उपासना का उल्लेख,

★वैदिक काल पूर्व वैदिक काल से उपासना का प्रचलन,

★ऋग्वेद में सूर्य उपासना का उल्लेख,

★बिना मंत्र जप और ब्राह्मण के पूजा का विधान,

★सभी जाति धर्म की पूजा है महापर्व छठ,

★त्रेता युग मे भगवान राम माँ जानकी ने भी की छठ पूजा पौराणिक कथाओं में उल्लेख,

★द्वापर युग महाभारत काल मे द्रोपदी ने भी की थी छठ पूजा,

★भगवान भास्कर की आराधना का महा पर्व छठ,

★दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है छठ पर्व,

★सूर्य को आरोग्य देव माना जाता है,

★छठ पर्व के दिन सूर्य की किरणों का विशेष प्रभाव जल के साथ दोगुना होता है, 

★बिहार,झारखंड,पूर्वी उत्तरप्रदेश में विशेषतःमनाया जाता है छठपर्व,

★ऊषा यानी प्रातःकाल उगते सूर्य की प्रथम किरण ऊषा को सूर्य की पत्नी एव छठी मैया कहा जाता है,

★अगर किसी उपासक को मंत्र भी नहीं आता फिर भी सूर्य की तरफ मुख कर अर्घ्य देने से उपासना स्वीकार होती है,

★माना जाता है कि सर्वप्रथम मागाब्राह्मणों ने प्रारम्भ की थी छठ पूजा,

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पैराणिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि सर्वप्रथम भगवान भास्कर की उपासना महादानी कर्ण ने प्रारम्भ की थी पौराणिक कथानुसार वे भगवान सूर्य के पुत्र थे और परमभक्त उपासक भी वे प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्यं देते थे ये उनकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण भाग था।

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कहीं कहीं उल्लेख मिलता है कि सर्वप्रथम छठ पर्व अर्थात छठी मैया की पूजा अर्चना अर्घ्य की शुरुआत राजा प्रियवद ने अपने मृत पुत्र को पुनः सजीव पाने हेतु की थी,

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आइये इस कथा की ओर चलते हैं

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राजा प्रियवद धर्मपरायण एव प्रजापालक दयालु राजा थे,वह निसंतान थे इसकी वेदना उन्हें सदैव रहती मन दुखी रहता वह एक दिन अपनी पीड़ा के निवाणार्थ महर्षि कश्यप के पास गए कश्यप ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराई एव यज्ञ में आहुति के लिए तैयार खीर को कश्यप ऋषि ने राजा की पत्नी महारानी मालिनी को खाने के लिए दी निश्चित कालखण्ड के बाद राजा को पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन वह मृत पुत्र था राजा बहुत दुखी हुए वह पुत्र के शव को लेकर विलाप करने लगे और मृत पुत्र के साथ ही स्वयं भी म्रत्यु का वरन करने हेतु उद्दत हुए

तभी दैवयोग से ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई और उस दिव्यशक्ति ने मृत शिशु को स्पर्श किया और वह जीवित हो उठा ये चमत्कार देखकर राजा शपत्नीक दिव्य शक्ति की अर्चना स्तुति करने लगे। 

दिव्य शक्ति ने कहा राजन मैं ब्रह्मा की मानस सन्तान षष्ठी हूँ आज के दिन जो भी पूर्ण निष्ठा के साथ छठी मैया का व्रत पूजा अर्चना करेगा उसे सन्तान का दुख नहीं व्यापेगा

राजा प्रियवद ने छठी मैया का व्रत एव उपासना करने का निश्चय किया एव सभी को व्रत करने हेतु प्रेरित किया,

उस समय कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी तब से ही छठ पर्व मनाया जाता है ऐसा मानना है।

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त्रेतायुग रामायण काल मे भी छठ पूजन अर्थात भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का उल्लेख मिलता है जब भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या लौटे तब भगवान राम ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत रखा था एव ब्रह्म हत्या से लगे पातक से मुक्ति हेतु पूजा की थी ऐसा उल्लिखित है पैराणिक कथा के अनुसार माँ सीता द्वारा भी छठी मैया का व्रत करने का उल्लेख है।

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द्वापर युग महाभारत काल मे द्रोपदी द्वारा भी छठ मैया की उपासना एव पूजा का पौराणिक ग्रन्थों में उल्लेख है पांडवों को मिले वनवास से मुक्ति हेतु द्रोपदी जी ने ये व्रत रखा था कही कहीं उल्लेख है कि जब पांडव जुए में सबकुछ हार गए तब उस वैभव को पुनः प्रॉप्त करने हेतु छठी मैया का व्रत रखा और उन्हें राजप्रासाद पुनः मिला।

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कलि युग में भी पूर्ण आस्था एव विधिविधान से ये महापर्व छठ मनाया जाता है जिसमें व्रती उदित होते हुए एव अस्त होते हुए सूर्य को कमर तक जल में खड़े होकर अर्घ्य देते है एव लोक मंगल एव स्वमंगल की कामना करते हैं

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छठ पर्व के दिन इन विशेष मंत्रों का जाप भी किया जा सकता है अगर मंत्र नहीं आते तब भी भगवान भास्कर को समर्पित अर्घ्य स्वीकार है।

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ॐ मित्राय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ सूर्याय नम:

ॐ भानवे नम:

ॐ खगाय नम:

ॐ पूष्णे नम:

ॐ मरीचये नम:

ॐ आदित्याय नम:

ॐ सवित्रे नम:

ॐ अर्काय नम:

ॐ भास्कराय नम:

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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