शेर(माहौल)

    


    

माहौल

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मौसम माहौल मस्ती अब बची ही कहाँ 

है तेरे हिस्से में,

तू तो बस जागीर दार की रहनुमाई पर

बसर कर,

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आह डाह और कराह की भनक तो जरूर लगती हैं उन्हें,

मगर सोचते हैं वे कोई सिसकियों के साथ रोता क्यों नहीं,

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तुम्हारी खामोशी तुम्हें मुबारक मेरे अजीज हमसाये दोस्त,

मगर कलम जरूर आबाज दुरुस्त रखेगी

मौजूदा दौर में,

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फखत दो बखत की रोटी की जुगाड़ भी भारी रही मौजूदा दौर,

तू वस शिद्दत अदब के साथ हुक्मों को

सिर झुका के मान,

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लोगों की मौतें सियासतदानों के लिए फखत एक नम्बर है,

चिराग किस घर का बुझा इन्हें ये जानने

की फुर्सत नहीं,

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तेरे गले की आबाज अब बुलन्द होना चाहती है,

आईना बोल रहा है तू अब बोलना 

शुरू कर,

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रोशनी चिराग दौलत जमीं महंगी हो गयी सुनो यारो,

दरारें डालने की कोशिश में कुछ लोग 

बहुत माहिर हैं,

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खेल बड़े ही सलीके तजुर्बे काबिलियत से खेला जा रहा है,

तुझे भनक तक नहीं कि तेरे दामन से लत्ते काफूर हो चले हैं,

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भाई से भाई मजहब से मजहब को लड़ाने की चाल समझो,

कुर्सियों के शौकीन इंसानियत की कीमत नहीं जानते,

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किताब,कॉपी,कुर्सी,चाय,पकौड़े सब बहुत महंगे हो गए हैं,

आबाज गले से क्यों नहीं आती तुम्हारे आज कल यारो,

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तुम अब और हमारे सहन,सिद्धांत, सराफत की परख ना करो,

जब गुबार फूटेगा हमारा तब तुम बजूद खो बैठोगे हुक्मरान,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर


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