माहौल
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मौसम माहौल मस्ती अब बची ही कहाँ
है तेरे हिस्से में,
तू तो बस जागीर दार की रहनुमाई पर
बसर कर,
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आह डाह और कराह की भनक तो जरूर लगती हैं उन्हें,
मगर सोचते हैं वे कोई सिसकियों के साथ रोता क्यों नहीं,
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तुम्हारी खामोशी तुम्हें मुबारक मेरे अजीज हमसाये दोस्त,
मगर कलम जरूर आबाज दुरुस्त रखेगी
मौजूदा दौर में,
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फखत दो बखत की रोटी की जुगाड़ भी भारी रही मौजूदा दौर,
तू वस शिद्दत अदब के साथ हुक्मों को
सिर झुका के मान,
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लोगों की मौतें सियासतदानों के लिए फखत एक नम्बर है,
चिराग किस घर का बुझा इन्हें ये जानने
की फुर्सत नहीं,
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तेरे गले की आबाज अब बुलन्द होना चाहती है,
आईना बोल रहा है तू अब बोलना
शुरू कर,
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रोशनी चिराग दौलत जमीं महंगी हो गयी सुनो यारो,
दरारें डालने की कोशिश में कुछ लोग
बहुत माहिर हैं,
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खेल बड़े ही सलीके तजुर्बे काबिलियत से खेला जा रहा है,
तुझे भनक तक नहीं कि तेरे दामन से लत्ते काफूर हो चले हैं,
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भाई से भाई मजहब से मजहब को लड़ाने की चाल समझो,
कुर्सियों के शौकीन इंसानियत की कीमत नहीं जानते,
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किताब,कॉपी,कुर्सी,चाय,पकौड़े सब बहुत महंगे हो गए हैं,
आबाज गले से क्यों नहीं आती तुम्हारे आज कल यारो,
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तुम अब और हमारे सहन,सिद्धांत, सराफत की परख ना करो,
जब गुबार फूटेगा हमारा तब तुम बजूद खो बैठोगे हुक्मरान,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर