व्यंग्य(आधुनिक ईर्ष्यालु मित्र)

व्यंग्य(आधुनिक ईर्ष्यालु मित्र)

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मुँह पर मीठे मीठे रसगुल्ले सी मीठी बात,               

पीठ पीछे होते ही चाल छल भितरघात,  

जुबान पर मायावी हंसी की डोर,

दिखाबे से सराबोर,

निंदक घनघोर,

चुगलखोर,

आधुनिक दौर में अधिकांश मित्र ऐसे ही मिलेंगे,

बहुत कम रह गए हैं जिनके चेहरे प्रगति देख खिलेंगे,

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हमारे सभी सभी मित्र सफलता पा जाएं,  

सानन्द दीर्घानन्द रोज रोज पाएं,  

भितरघाती मित्र आएं, 

दिखावे से गले लगें सामने ही सही,

बुझे दिल से मुस्कराएं,                                  


पीठ पीछे फिर शत्रु रूप में मन,

मोहक हो जाएं,

जाल बिछाएं,

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शकुनि सी विकट जाल हर ओर

मायाजाल फैलाएं,

और अपना अमूल्य लहू जलाएं,

अब हमें

ऐसे ईष्यालु मित्र बहुत भाते हैं,                   

पीठ पीछे ना सही, 

लेकिन मुँह पर तो गुण गा ही जाते हैं, 

ये बहुत ही जबरदस्त किरदार निभाते हैं,

यदा कदा सर्वत्र अब ये जीव पाए जाते हैं, 

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सुनो पाठको

यही गुण धारक मित्र आगामी दिवसों में

नेता बन जायेंगे,                 

खायेंगे जिस थाली में उसी में छेद कर

बहुत मुस्करायेंगे,

ईर्ष्यालु मित्र अधिक मात्रा में ऊर्जा लहू

जलाते हैं,    

मुख सम्मुख दिल दबा प्रशंसा के गीत

गाते हैं, 

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हमारे ईर्ष्यालु सदजन मित्र,

पीठ पीछे अपनी छुरियों में धार लगाएगें, 

खंजर चमकायेंगे,धार लगाएगें,

बुराइयों पर बुराइयां करेगें और मुस्करायेंगे,        


छुरियां धोखा और षणयंत्र की चलेंगी,              


बुद्धि बल तोड़े उस तंत्र में खूब पलेंगीं, 

ये अपनी धूर्तता से स्वयं हार जायेगें,

हम बढेगें इतिहास बनायेगें,

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बहुत मेहनत करनी पड़ती है,

प्यारे अजीज ईष्यालु मित्र को,                           

वह अपनी कमियां अधिक छिपाता है,

तब कहीं वह मित्र सम्मुख मुस्कराता है,              


फिर भी बेचारा नजर आ ही जाता है, 

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वह हराना चाहता है सदा धोखे से बल से,          


और इनसे पार पा गए तो अपने छल से,            


कभी कभी भाड़े के खरीदे मानव बल से,              


येनकेन प्रकारेण पराजित करने की 

चाह में,                                   

अपना एकाकी सम्मान बल पाने की

राह में,   

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शत्रु मित्र दोनों का उन्नति तक साथ

रहना जरूरी है, 

इनके बिना सफलता मामूली और 

अधूरी है,                                                     


निंदक अरु ईर्ष्यालु मित्र अपरमित

पूंजी है,                         

इन्ही के व्यंग्य बाणों से आबाज हमारी 

गूंजी है,  

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हम ईर्ष्यालु मित्र का आभार व्यक्त करते हैं,           

उन्हें सानन्द भुजाओं के आगोश में भरते हैं,                       

तुम सदा लंबी उम्र पाना मेरे मित्र प्यारे,               


तुम हो अद्भुत अनौखे तुम हो न्यारे,

तुम दरार और रार का जीता प्रतिरूप हो,

तुम शकुनि के मायाजाल का रूप हो,

तुम्हारी एक एक हरकत जानता हूँ,

फिर भी तुम्हें मित्र मानता हूँ,

सतर्क रहता हूँ,

गुनगुनाता हूँ,

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बहुत सारे मित्र जान लगा देते हैं मित्र के वास्ते,

बहुत से कांटों और चाल के बना देते हैं, रास्ते

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शिव शंकर झा "शिव"                      

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

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