घुटन की कश्मकश की दीवारों को तोड़ प्यारे,
अपनी कश्ती को लहरों की ओर मोड़ प्यारे,
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उतर कर सामना कर समंदर की ताकत का,
फिर अपना बजूद कितना है गर्व से बोल प्यारे,
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यूँ ही वेबजह भय की जंजीरों की पकड़
में ना आ,
तू भी कुछ अलग है बेहतर है जमाने को
बता,
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सुन जंग में खौफ तेरी पैशानी पर झलक ना जाए ,
सामने बेशक काल प्रतिरूप काल ही क्यों ना आये,
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हनक की सतत यात्रा चलो पूरी शिद्दत और दम से,
मगर ध्यान रहे गरीब की आह सीने को भेद ना दे,
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भाग जायेगें रूई के शेर तेज आंधी के तमाचे से,
तू पूरी ताकत से एक दहाड़ लगाकर तो देख,
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ये शत्रु भयभीत आर्त हो शरण आएंगे यकीं है,
तू वश समरभूमि में कदम बढ़ाकर तो दिखा,
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दुनिया सलाम इस तरह से नहीं करने वाली प्यारे,
ये ताकत पद रुआब को देखकर सलाम ठोकने
की आदी है,
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दुनिया दिल से यूं ही नही लगाती किसी
गैर को सुनो यारो,,
दिलों के रास्ते कुर्सियों के चार पैरों की
ताकत पर टिके हैं,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
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