शेर(समंदर)

                   

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।।समंदर।।

घुटन की कश्मकश की दीवारों को तोड़ प्यारे,

अपनी कश्ती को लहरों की ओर मोड़ प्यारे,

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उतर कर सामना कर समंदर की ताकत का,

फिर अपना बजूद कितना है गर्व से बोल प्यारे,

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यूँ ही वेबजह भय की जंजीरों की पकड़ 

में ना आ,

तू भी कुछ अलग है बेहतर है जमाने को

बता,

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सुन जंग में खौफ तेरी पैशानी पर झलक ना जाए ,

सामने बेशक काल प्रतिरूप काल ही क्यों ना आये,

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हनक की सतत यात्रा चलो पूरी शिद्दत और दम से,

मगर ध्यान रहे गरीब की आह सीने को भेद ना दे,

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भाग जायेगें रूई के शेर तेज आंधी के तमाचे से,

तू पूरी ताकत से एक दहाड़ लगाकर तो देख,

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ये शत्रु भयभीत आर्त हो शरण आएंगे यकीं है,

तू वश समरभूमि में कदम बढ़ाकर तो दिखा,

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दुनिया सलाम इस तरह से नहीं करने वाली प्यारे,

ये ताकत पद रुआब को देखकर सलाम ठोकने

की आदी है,

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दुनिया दिल से यूं ही नही लगाती किसी 

गैर को सुनो यारो,,

दिलों के रास्ते कुर्सियों के चार पैरों की

ताकत पर टिके हैं,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

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