शेर(सफेद पोशाक)

               


।।सफेद पोशाक।।
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मै सफेद पोशाक में एक दिन दफन हो

जाने वाली चीज हूँ,

जान लो तुम सब मैं बहुत ही अलहदा

किताब लिखकर जाऊँगा,

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ए मौत सुन गौर से सुन मेरी हुंकार अदब

से सुन,

तू जब भी मिलना तब सलीके और अदब से

पेश आना,

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मैं सज्ज हूँ तैयार हूँ ये गुलेदिल मौत मेरी हम

सफर,

तू ही तो है पहली और आखिरी मेरी महबूब जानेमन,

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अजीब रिश्ते बन गए कुछ अजब बन गए,

गजब की बात ये रही सब स्वार्थरत ही रहे,

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ए हवा ठहर और सुन सच अपने कानों से,

यहाँ अब आदमी को आदमी नहीं दिखता,

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तू कफ़न भी अपने वास्ते ना खरीद पायेगा,

तेरी पोशाक का साजोसामान कोई और लाएगा,

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ए मौत की दोस्त सांस तू बेअदबी मत दिखाना,

तेरा तो रोज का शौक है आना और जाना,

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मेरी कहानी लिखने वाला परवरदिगार सोच में है,

इसकी किताब का लिखा पन्ना ये कैसे छूट गया,

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मौत हवा का झोंका सा एक स्याह सच की कहानी है,

हम क्यों डरे ए सुन तुझसे तेरी आदत ये पुरानी है,

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बड़ा मजा आएगा मुझे जब तू सिर झुकाए सामने होगी,

मैं उन्नत पैशानी को लेकर चल पडूंगा तेरो बांहों में समा,

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जिंदगी बेशक अल्पकालिक रहे मेरी और

तेरी सनम,

मगर माथा कभी चौखट ना देखे किसी

और का, 

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सांस जब तलक रहेगी जिस्म में मेरे सुनो मेरे अजीज,

दासता स्वीकार नहीं होगी हरगिज किसी भी

भाव मे,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२५.११.२०२१ ०७.५१सु.

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