समसामयिक "व्यंग्य"
■दलबदलू■-------------
प्रत्येक दल की शान है दलबदलू,
जान है अभिमान है मान है दलबदलू ,
ऐसा कोई दल ना मिला,
जिसमें दलबदलू रूपी पुष्प ना खिला,
दलबदलुओं का खेल निराला,
कभी इधर कभी उधर का पाला
घर घर खाये निबाला,
अजब गजब निराला,
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पता नहीं ये इधर रहेगा या उधर,
किधर किधर किस किस डगर,
किस किस को धोखा दे जाएगा,
किस किस दल में छायेगा सेंध लगाएगा,
जिस गुरु की चरण रज लिया करता था,
कब उसी की आंखों में धूल झोंक आएगा,
सच्चा जननेता बनने की फिराक में है,
अबकी बार फिर आने की ताक में है,
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अजीब खिलाड़ी है राजनीति का,
महान रक्षक लोकतंत्र की रीति का,
गुरु को ही चित्त करने का कारण बनेगा,
टिकट हेतु विरोधियों के गुन गायेगा,
टिकट की पूरी पूरी जुगत भिड़ायेगा,
टिकट मिली तो ठीक,
अन्यथा,
घर वापिसी पूरे अदब के साथ होगी,
चोर चोर मौसेरे भाई की मुलाकात होगी,
विपक्षियों पर बरसेगा और लांछन लगाएगा,
लौट कर बिछुड़ा बुद्धू घर को आएगा,
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इसे आदमी कहें या नहीं,
कुछ भी हो ये जनतंत्र हेतु सही नहीं,
विश्वासघास का उदाहरण है दलबदलू,
जमा पूंजी से आहरण है दलबदलू,
अपनी दोनों उंगलियां घी के अंदर रखता है,
कभी इस घर की कभी उस घर की तरकारियाँ चखता है,
जहाँ इसकी जीभ जल जाती है,
वही फिर बिगड़ जाती है,
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फिर भी हर दल की चाह है दलबदलू
ख़ैबनहार है दलबदलू,
प्यार है इश्क,
रिश्क है,
लेकिन फिर भी दलबदलू महान है,
ये आधुनिक दौर का जागरूक इंसान है,
मौका मिले वहाँ जाओ,
प्रेम से पाओ,
गाओ,
अपनी जेब भरो मुस्कराओ,
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जनता भृमित सोचे अजब है ये,
बहुत ही स्वार्थरत गजब है ये,
इसने बूढे बाड़े अपने,
सियासी गुरू की लठिया तोड़ दी,
अपनी टिकट के खातिर नदी की
धार मोड़ दी,
अब ये बिरोधी दल की पत्तल उठा रहा है,
नीति सिद्धांत को धता बता रहा है,
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इनके सम्मान में चुनाव के मैदान में,
केवल और केबल नोटा ही दबाया जाए
ताकि फिर कोई चेला,
गुरु की फसल में आग ना लगा पाए,
हमने सुना था हमारे यहां तो सांप भी,
नमक का फर्ज अदा करता है,
दलबदलुओं को देख नागदेवता
शर्माते हुए आहें भरता है,
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दलबदलुओं से सीख जबरदस्त मिलती है,
इनकी निष्ष्ठा एक दल से नहीं मिलती है,
ये बदल बदल कर भाव देखते है,
ये अपना सतत प्रभाव देखते है,
इन्हें कुर्सी चाहिए कैसे भी जान लो,
ये असली राजनैतिक गुरु हैं मान लो,
ये मस्त है स्वतन्त्र हैं,
ये सर्वत्र हैं,
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शिव शंकर झा"शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२५.११.२०२१ ११.५० रा.
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