लेख-नया अदृश्य दुश्मन "ओमिक्रोन"
सावधान!
सावधान!
कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रोन आ धमका है!
प्यारे/सम्मानित देशवासियो
www.swatantralekhakshiv.in स्वतन्त्र लेखक शिव सर्वप्रथम आप सभी सुधीजनों,मित्रों,पाठकों एव नीतिनिर्माताओं के मध्य एक गम्भीर विषय पर लेख साझा कर रहा है।
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मेरा मकसद आप लोगों को डराना भयभीत करना बिल्कुल नहीं हैं मेरा उद्देश्य जन सामान्य को इस आने वाली अतिगम्भीर बीमारी/लहर से सचेत करना हैं आगाह करना है बचाने का प्रयास करना है। एक देश भक्त स्वतन्त्र लेखक होने के नाते मेरा ये दायित्व हैं हम अपने देश और देशवासियों के शुभ मंगल की कामना करें। सरकारें अपना काम करती हैं और करेगी भी! लेकिन इस भयावह स्थिति से जूझने के लिए सिर्फ सरकारी व्यवस्थाएं सक्षम नहीं हो सकती कारगर नहीं हो सकती शायद।
हम सब नागरिको को भी अपने दायित्वों जिम्मेदारियों का निर्वहन/राष्ट्रधर्म निभाते हुए पूर्ण करना चाहिए हमें भी नियत गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए।इस भीषण जानलेवा वेरिएंट यानी ओमिक्रोन से बचने का एक ही रक्षाकबच हैं हमें मास्क को नहीं त्यागना है सामाजिक दूरी का पालन करना है चुनावी रैलियों को छोड़ना होगा तभी जान बच पाएगी! फिलहाल इसकी कोई वैक्सीन या कारगर औषधि ईजाद नहीं हो पाई है विचार आपने करना पड़ेगा,सरकार अपना राजधर्म निभाएगी ही मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है।
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अदृश्य दुश्मन (ओमीक्रोन वायरस)
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कोरोना की त्रासदी से हम अभी तक उबर नहीं पाए थे इसी बीच रक्तबीज की तरह एक और महाघातक अदृश्य दुश्मन ओमीक्रोन वायरस आ धमका हैं। हमारे बीच,फिलहाल अभी ये देश की सरहद से दूर है लेकिन सचेत होना जरूरी है इस विकराल अदृश्य शत्रु से जो वेहद ही भयंकर मंजर दिखाने बाला बहरूपिया वायरस है दिसम्बर २०१९/२० में जब बुहान चीन में कोरोना पैर पसार रहा था तब हम वेफ़िक्र थे खूब बरातें जश्न और पार्टियां कर रहे थे तब हम इस गफलत(गलतफहमी)में थे कि वायरस(परजीवी) तो वुहान में आया है हमारे देश मे नहीं आया लेकिन फिर उसी वायरस को एक यायावर देश की सरहद के अंदर ले आया फिर उसका अंजाम सब जानते हैं कितना झेला है उस त्रासदी में दुनिया एव भारत ने,अत्यधिक जनहानि हुई बाजार धड़ाम से गिर पड़े अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी सब विदित हैं।
ओमीक्रोन इतना डरावना विध्वंसकारी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये डेल्टा बेरिएंट से ज्यादा खतरनाक और भयानक हैं डेल्टा की शक्ति हम मई २०२१ में देख चुके हैं हर ओर गिरती लाशें हॉस्पिटलों में हाहाकार श्मशान घाट अपने यौवन काल पर आ गए थे मुर्दों को वेटिंग में जलाना पड़ रहा था भट्टियां पिघल गयी थीं ऑक्सीजन की गम्भीर किल्लत का सामना करना पड़ रहा था। सरकार की भरपूर कोशिश उम्दा प्रबंधन भी आम जन हानि को रोक नहीं पाया था निश्चित समय के बाद वह वेब धीमी हुई फिर अर्थव्यवस्था डंबाडोल अन्तहीन दर्द वेदना और अपनों को खोने का भयंकर शूल वक्षस्थल में समा गई वह त्रासदी।
तब भी चुनाव का बोलवाला था और अब जब ये नया वेरिएंट आ रहा है तब भी चुनाव का विगुल बज चुका है रथी महारथी अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ गढ़ जीतने को निकल पड़े हैं भीड़ का बेसुमार गुबार और नेताओं की रैलियों का चार्ट प्लान तैयार हो चुका है भीड़ अपने जन नेता की अगुवाई में बसों में भर भर कर लायी जा रही है निश्चित दो गज दूरी और मास्क मुख से पूर्णतः नदारद इक्का दुक्का मास्क लगाए मिल जाते हैं उन्हें भी लोग मजाकिया अंदाज में देखकर मधुर मुस्कान ले आते हैं। गॉवों में सरकारी दफ्तरों में बाजारों में लोग बिना मास्क बेरोकटोक घूम रहे हैं प्रशासन नाम की चीज हुक्म अदायगी तक सीमित प्रतीत होती है।
क्या कोई ऐसा राष्ट्रभक्त जननेता अपने चुनावी भाषण में भोलीभाली जनता को अपने घर पर रहने की सीख नहीं दे सकता। क्या हम इस आने वाली भयानक त्रासदी से जनता को पहले ही आगाह नहीं कर सकते मीडिया निरन्तर खबरों में इसे नहीं ला सकती कुछ एक मीडिया हाउस इस खबर को दिखा रहे हैं क्या अन्य सब चुनावी मौसम में राष्ट्रधर्म विसरा चुके हैं!
क्या कोई जननेता सच्चा देशभक्त नहीं रहा जो जनता को असमय काल के गाल में जाने से पहले रैलियों पर रोक या विधि सम्मत कार्यवाही सुनिश्चित करा सके ताकि इस नए वेरिएंट का प्रसार न हो सके।
आजकल दुनियां के कई देश इस भयानक अदृश्य शत्रु की चपेट में आते जा रहें हैं जिसका पहला केश मिल चुका है अब इसकी पुष्टि कई और देशों ने कर दी है वहाँ पर भी भारी हड़कंप मचा हुआ संक्रमण दर तेजी से पैर पसार रही है।
ये वेरिएंट इतना नरसंहारक है अगर ये भारत की सीमा में प्रवेश कर गया तो दूसरी लहर से ज्यादा प्राणघातक साबित होगा। जानकार चिकित्सक बताते हैं इस वायरस पर वर्तमान कोरोना टीका भी शायद कारगर ना हो सके वैसे भी कोरोना वैक्सीन शतप्रतिशत कोरोना को रोकने में समर्थ नहीं है ऐसा विशेषज्ञों का मत है। ओमीक्रोन के संदर्भ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन अलर्ट जारी कर चुका है इससे संक्रमण बढ़ने की गम्भीर आशंका जताई जा रही हैं विशेषज्ञों का मानना है अगर ये बेकाबू हुआ तो ये भयानक तबाही ला सकता है।
नए वेरिएंट में पचास से ज्यादा म्यूटेशन पाए गए हैं अर्थात ये बार बार रूप बदलने में माहिर है ये डेल्टा वेरिएंट से सात गुना ज्यादा तीब्र गति से फैलता है संक्रमित करता है इसका पहला मरीज ११.११.२०२१ को अफ्रीकी देश बोत्सवाना में पाया गया था जो एचआईवी संक्रमित व्यक्ति था साउथ अफ्रीका में अबतक १००से अधिक संक्रमितों की पुष्टि की जा चुकी अब ये वायरस जर्मनी में भी पहुंच चुका है। इस वेरिएंट की हवा में फैलने की आसंका भी जताई जा रही है इसी वजह से स्वास्थ्य विशेषज्ञों के माथे पर बल पड़ चुके हैं इसके निवारण हेतु विशेषज्ञ वैज्ञानिक जुट चुके हैं इस बेरिएंट ने यूरोप में हाहाकार मचा रखा है। जर्मनी,फ्रांस,नीदरलैंड,इजराइल,हांगकांग,साउथ अफ्रीका, जैसे कई अन्य देश इस वायरस की जद में आते जा रहे हैं,कई देशों ने उड़ानों को रद्द करने की नियमावली जारी कर दी है एव रद्द कर दी गयी हैं लोकडाउन् जैसे विकल्प भी अमल में लाये जा सकते है एव अन्य कई देशों ने संक्रमित देशों के मध्य आने वाली उड़ानों पर रोक लगा दी है अन्य देश भी उड़ानें रद्द करने जा रहे हैं ताकि पर्यटकों यात्रियों के माध्यम से ओमीक्रोन सीमा में प्रवेश ना कर जाए। हमारा देश भारत भी इस पर लगातार नजर रखे हुए है एव कारगर प्रभावी ढंग से रोकने की रणनीति पर कार्य कर रहा है।
भारत सरकार भी मजबूत इच्छा शक्ति के साथ प्रधानमंत्री जी के निर्देशन में एक्शन मोड़ में है सभी विकल्पों पर बारीकी से मंथन मन्त्रणा का दौर जारी है।
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी को सही मानें तो वह भी २०२२ को मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी वाली वर्ष बता चुके हैं जिसके उन्होंने कई कारण/आधार बताएं हैं जैसे परमाणु युद्ध,वायरस,भूकम्प,आदि तबाही से जूझ सकती है दुनिया।
हमारा देश भारत चुनावों का जश्न मनाने की तरूणावस्था में प्रवेश कर चुका है तैयार है,रैलियों की भरमार का प्रचंड वेग जनसमूह को बहती नदी की धार सदृश अपने साथ लिए जा रहा है। भीड़,अपार भीड़, ना दिन, ना रात की फिक्र ना भोर का जिक्र लाखों नरमुंड जयघोष जिंदाबाद का शोर अपार भीड़ रंग बिरंगी टोपियों के साथ दृश्यमान हो रही है।
बड़ी ही शर्मिदंगी और अनुशासनहीनता राजनीतिक नैतिक पतन को दर्शाता ये जन प्रवाह ना तो दो गज दूरी और नाहीं मास्क लगाना जरूरी समझ रहा है जनमानस,
मुझे अत्यधिक क्रोध और हंसी उन जननेताओं पर आती है जब सरकारी फाइलों में कोरोना नियमों को पालना हेतु सख्त नियमावली अमल में लाने की बात करते हैं,और फिर वे ही नियमों को तार तार करते हुए रैलियों में रेलमपेल भीड़ को सम्बोधित करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं क्या ये जननेता लोगों को काल के गाल में भेजने हेतु प्रेरक नहीं हैं माध्यम नहीं हैं। क्या इन पर विधि का दंड प्रभावी नहीं हैं अगर हां तो क्यों नहीं होती कार्यवाही!
मैं क्षुब्ध हूँ कलम आक्रोशित है अप्रैल २०२१ में जननेता शाम को दूरी बनाइये मास्क लगाइए की सीख देते थे और सुबह वही जननेता अपार भीड़ के बीच होते थे
ये दोहरा चरित्र क्यों आप तो देश की जनता के संरक्षक हैं गार्जियंस हैं।
विचार करना पड़ेगा?
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
लेख विभिन्न श्रोतों पर आधारित है।
२७.११.२०२१ १०.१२ रा.