*वरिष्ठ कार्यकर्ता का दर्द*
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर लिखा
गया व्यंग्य सच के बहुत पास!
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वरिष्ठ
कार्यकर्ता
मेरे पास आया
रुहांसे गले से दर्द सुनाया,
बोला भैया आप ही
मेरे बात लिखिए,
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नहीं सुनेगें,
वरिष्ठ,
और ना हाई कमान वमान,
मेरा पूरा जीवन
पार्टी को समर्पित रहा,
अब नहीं धन बचा,
ना बची उम्मीद ना सम्मान,
चाटूकारिता में लिप्त
भितरघातियों
का दौर है,
पुराना कार्यकर्ता
सिसकता है,
लठिया खाता है,
और चौकियों में गालियां,
काम मिला केवल
बोलो
जिंदाबाद
बजाओ तालियाँ,
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मैं सिर्फ अर्दली सा
होगया लगता हूँ,
शकुनियों के आगे
खो गया लगता हूँ,
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डंडा उठाया,
टाट बिछाया,
झंडा फहराया,
पुलिस का डंडा खाया,
बड़े नेता को बचाया,
लेकिन टिकट का
नम्बर नहीं आया,
अब बगावत करनी है,
जिन सरदारों को
सरदारी
दिलबाई,
उनकी पोल खोल
जनता के बीच
रखना चाहता हूँ,
आपके द्वारा,
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आपकी कलम का
समर्थन
मिल जाये,
स्वतंत्र लेखक वर,
मैं मौन रहा!
फिर हाँ कह दी,
चलो लोक का तंत्र,
करते हैं स्वतंत्र,
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वरिष्ठ कार्यकर्ता बोले,
भरकर छुपी हुंकार,
अब देखिए
कैसे उतारते हैं
कर कर कुर्ते तार तार,
तेल देखना
और तेल की महंगी धार,
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ये सफ़ेदपोश
दिल से निष्ठुर
और भयंकर काले हैं,
सह मात चाल छद्म
उर अंचल में पाले हैं,
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और सुनिए वेदना लेखक वर,
पार्टी में,
जब दलबदलू आ जाता है,
वह टिकट और मंत्रालय
में कुर्सी पा जाता है,
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हम अब और
उल्लू नहीं बन पाएंगे,
२०२२ में ईंट से ईंट बजायेगें,
कमियां भी पता है,
और इनकी
काली करतूतें भी,
मुंह दिखाने लायक नहीं
छोड़ने वाला,
टिकट मिली तो ठीक,
वरना मेरी
जन विद्रोह यात्रा,
पोल खोल चेहरा देख यात्रा,
को कोई नहीं रोकने वाला,
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ये पार्टी
कार्यसमिति
कार्यकारिणी
अनुशासन इकाई
पुराने वफादार,
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वरिष्ठ कार्यकर्ता साथी,
के पैर काट देती हैं
और नवागत दलबदलू को
टिकट बांट देती हैं,
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अबकी बार इस नवागत दलबदलू के
पैर काटने हैं,
दो अपने पास,
दो विपक्षियों में बांटने है,
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मेरी आबाज दब जाती है
शक्तिशाली अध्यक्ष की
जयकार,
जिंदाबाद का शोर आता है
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पुराना कार्यकर्ता
फिर एक बार पूर्व की भांति,
उसी अस्पस्ट भीड़ में
वेदम होता हुआ
सर्वदा खो जाता है...
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जयःहिन्द
शिव शंकर झा"शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२८.०८.२०२१ ०७.५६ प्रा.
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