।।मित्र की परख।।
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मित्र परख का समय खास होता है विपदा काल,
जो इस क्षण में साथ खड़ा हो मित्र वही है ढाल,
जो धन दौलत पद कद देखत संग बढ़ावें पींगें,
इनसे सदा सतर्क रहो तुम इनकी होती कोरी डींगें,
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संघर्ष विपदा काल जीवन का विशेष महान खण्ड है,
बाहुबल ज्ञान का होता उदय निज शक्ति से प्रचंड है,
जीवन घना जब तक थपेड़ों से तपा ही नही जिस मनुज का,
वह क्या समझ पायेगा झंझावात और सनेह निज स्वजन का,
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ज्ञान से तुम परख सकते हो स्वजन और मित्र बैरी,
ज्ञान से तुम जान सकते हो समय की चाल गहरी,
ज्ञान से तुम समझ सकते हो जहाँ में कौन अपना मित्र प्यारा,
ज्ञान से तुम जान लोगे शत्रु दल और मित्र दल का भेद गहरा,
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जो धन की खुशबू देखके आये उसको कर दो दूर,
इनसे बढ़िया कट्टर दुश्मन बैर करै खुलकर भरपूर,
दारू गांजा बीयर भांग और खिलावै रजनी गन्धा,
ऐसा दोस्त घना बैरी है समझ दूर की बात रे वन्दा,
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जबरन व्यसन का शौक लगावै,बीड़ी सिग रेट सुट्ट लगावै,
शिक्षा से मन को भट कावै,चुपड़ी चुपड़ी बात सुनावै,
इनसे दूरी जल्दी जल्दी कर ले भैया,
डूब जायेगी अधर में तेरी अपनी नैया,
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बहुत से मित्र विपदा में तुम्हारा हाथ भी ना साध पाएंगे,
वे मात्र तेरी मौज मस्ती पार्टियों का रंग और रौनक बढाएंगे,
काल जब विपरीत होगा पास तेरे वे नही फटकेगे तेरे द्वार नेहरे,
बुरे उस काल के विकराल क्षण में मित्र ऐसे मुंह छिपाएंगे,
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वे अपना रूप बहरूपिया बदल फिर गुल खिलाएंगे,
सजग रहना संभल रहना बिरोधी बहुत ही हैं पास सारे,
हैं बहुत से नेत्र के सानिध्य में हैं बहुत से पीठ पीछे मित्र कारे,
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परख लो गर परखने की तीव्र बुद्धि पास है,
अधिकतर मित्रता दिखावा है झूठी आस है,
कुछ एक मित्र आज भी मित्रता की कीमत जानते हैं,
वे मित्र की वहन को वहन और माँ को माँ मानते
हैं,
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शिव शंकर झा 'शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
मानवाधिकार कार्यकर्ता
10.09.2021 11.28 pm
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