- शेर(पीठ में खंजर)
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सरसराता खंजर सीने में पैबस्त हो गया पीठ की ओर से,
लहू से सने हाथ जब अपने के नजर आए तो दर्द चिल्ला उठा,
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खैर तुम रहने दो अब और दिखाबे से गले मत लगाओ,
पीठ पर हाथ फेरकर खंजर का नाप लेते हो,
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समंदर और ज्यादा और ज्यादा उफान पर लग
रहा है,
शायद उसकी सहनशक्ति ज्यादा दिन तक टिक
न पाएगी,
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कह दो बड़ी साफगोई से मेरे हमसाये
दोस्त से वेबाक ,
वह अब दिखाबे की यारी से तौबा कर
ले वक्त रहते,
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तू अब और हमें बरगला ना पायेगा बह रूपिये दोस्त,
तेरी काली करतूतें जुबान पर आ गईं हम जान
गए,
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दुश्मन बहुत भाते हैं हमें जो समक्ष सीना तान
आएं,
भेष बदले गद्दार दगाबाज दोस्त हमें नहीं भाते,
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बंद कमरे में साजिशों,खुराफातों का दौर जारी है मौजूदा वक्त,
दरबाजा खुला तो चेहरे घने पहचान वाले नजर आए,
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गैर को क्या खबर तेरी बढ़ती हवा और
शोहरत की,
जिन्हें खबर है वे तेरे आसपास वाले हैं
मेरे दोस्त,
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ए मौत सुन मेरी हुंकार अदब से आंख
खोलकर सुन,
गले लगाने की जिद अभी ठीक नहीं
कुछ काम अभी निपटाने है हमें,
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नजर नजर को नजरअंदाज ना कर बदलते दौर में,
नजरदार नजर की कमान ताने हैं वार के वास्ते,
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तुम यक़ी करना बड़ी समझ और आंख
खोलकर दोस्त,
मिट्टी कब धसक जाए इतना तो इल्म रखना,
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.१२.२०२१ ०८.३५ प्रा.
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