सरहद के निगेहवाँ
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तिरंगे की चादर ओढ़ कर तू चल पड़ा फर्ज पूरा कर शान से,
तूने कुछ बोला भी नही और कुछ मांगा भी नही मेरे दोस्त,
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तुम्हें हम अलविदा तो नहीं कहेगें मेरे दोस्त हमसाये सैनानी,
क्योंकि तुम हमारी रगों में धमनियों में समाए हो सदा के लिए,
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वतन पर जबानी जिसके बेटे की कुर्बान हो गयी मुस्कराते हुए,
वह खानदान भी कम शहीद नहीं जो दर्द उम्र भर
सहेगा शान से,
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बखूब होता है पता उस माँ वहन और भाई को इस
बात का,
मुस्कराता लौटे ना लौटे अब ये सरहद का सिपाही
है,
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लोग कहते हैं शहीदों के खानदान माँ बाप इतने दिलेर क्यों होते हैं,
बताता हूँ जो माँ एक बेटा सरहद के नाम करदे वे शेर नहीं रोते हैं,
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मेरी सरहद के निगेहवाँ तुझे और क्या दू भेंट में,
मेरा लहू और हम कर्जदार हो गए तेरे जाने के बाद
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तिरंगे के रंग सिखा रहे हैं त्याग,वलिदान,शौर्य से लबरेज रहने की कहानी,
हम उस वतन के है वाशिन्दे जहाँ माँ एक बेटा सरहद के नाम करती है,
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जिंदगी बहुत नहीं होनी चाहिए मेरी नजर
में सुनो दोस्त,
मौत जब हो तब तिरंगा लिपटा हो मेरे लहू से
सुर्ख बदन में,
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इतिहास के पन्ने पर सुर्ख सुनहरा नाम जिस
शेर का हो जाये अंकित,
वह माँ भारती का सपूत सदैव जिंदा रहेगा
जमाने तलक,
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जयःहिन्द
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.१२.२०२१ १२.३७दो..
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