लघु उपन्यास(एक पुलिसवाला ऐसा भी!)

     

लघु उपन्यास

एक पुलिसवाला ऐसा भी!

            (भाग १)

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        चौकी इंचार्च अनुज सिंह गुस्सा में आगबबूला होते हुए चौकी में प्रवेश किए,शायद कहीं वे दबिश से लौटे थे मूड खराब लग रहा था।उनकी नजर कार्यालय के कोने में जमीन पर बैठे कोई १६ साल के युवक पर पड़ी।वह गुमसुम सा बैठा था उनि अनुज सिंह ने अपने साथी सिपाही से पूछा इसे किस केस में उठाकर लाये हो,


सिपाही बोला-साहब जेब काटने एव चोरी करने के जुर्म में पकड़ा गया है ये,

क्या इसके घर सम्पर्क नहीं किया है 

आपने  इधर से…...

साहब सम्पर्क नहीं हो पाया-सिपाही बोला

किसी सिपाही को इसके घर भेज सकते थे- 

साहब आपको पता है कितनी नफरी है चौकी में स्टाफ कम ही है अपने पास,

ठीक है अजय.

चौकी इंचार्ज ने कहा- डंडा लाओ मैं देखता हूँ इस लड़के को उस दिन अनुज सिंह का दिमाग ज्यादा गरमाया हुआ था।

डंडे का नाम सुनते ही युवक घबड़ाता हुआ चौकी इंचार्ज के पैरों पर गिर पड़ा।

सर- मुझे मत मारिये मैं चोर नहीं हूँ मैं मजबूर हूँ पढ़ना चाहता हूँ मैं चोर नही हूँ

चौकी प्रभारी अनुज सिंह ने कहा-अरे बेटा यहां सब यहीं कहते हैं मैं चोर नहीं हूँ कभी किसी अपराधी ने कहा है कि मैं अपराधी हूँ।

    सर प्लीज सुनिए तो मैं सच कह रहा हूँ

हाँ बता- अनुज थोड़े सहज होते हुए बोले

लड़का बोला- सर मुझे अपनी फीस और माँ का इलाज कराना है अगर हम समय पर फीस जमा ना कर सके तो स्कूल से निष्कासित हो जाऊँगा इसी कारण से

मुझे चोरी करनी पड़ी।

अगर समय पर दबा नहीं मिली तो माँ और अधिक बीमार हो जाएगी।

अनुज बोले- तो तुझे चोरी करने की क्या जरूरत थी कहीं काम कर लेता. सर काम किया था किंतु जिस सेठ के यहां काम करते थे वह पूरे दिन काम कराता प्रताड़ित करता और पैसे देते समय काम मे कमी निकालकर आधा अधूरा भुगतान कर देता हम विवश थे हमे कोई अन्य मार्ग ना सूझा. सर मैं चोर नही हूँ।

       ठीक है अनुज सिंह बोले ए रामसिंह सुनो जल्दी से इधर आओ रामसिंह अनुज सिंह का चालक था वह बहुत ही सुलझा और समझदार व्यक्ति था।

रामसिंह- जी साहब बोलिये

अनुज बोले- तुम इस लड़के के घर सादा वर्दी में जाओ और हकीकत पता करो क्या ये लड़का सच कह रहा है।

ठीक है साहब- मैं इसकी तहकीकात करता हूँ और हां रामसिंह एक बात और इस लड़के की माँ को पता ना लगे कि तुम पुलिस कर्मी हो 

ठीक है साहब रामसिंह ने कहा-और वह उस लड़के के घर चल दिया

      दो चार लोगों से पता पूछने एव तस्दीक करते हुए रामसिंह उस लड़के के घर पहुँच गया।

रामसिंह ने दरबाजा खटखटाया लेकिन कोई जबाव नहीं आया

उन्होंने अब तेज तेज दो चार बार दरबाजा खटखटाया तब एक बीमार सी औरत

बाहर आई,

अरे भैया कौन हो 

रामसिंह बोले- तुम्हारा लड़का कहाँ है

औरत बोली- वह सेठ के यहाँ काम करने गया है,

रामसिंह-क्या काम करता है लड़का

औरत-सेठ के यहॉ चाय पानी पिलाता है झाडू पोंछा करता है।

रामसिंह-उसके बाद

औरत-वहां से स्कूल चला जाता है।

रामसिंह-ठीक है

औरत-अरे भैया तुम्हारे पैसे बापिस कर देगें पैसे आते ही

उसने राम सिंह को तकादे बाला समझा,

राम सिंह ने एक एक कर सारी जानकारी जुटा ली,

रामसिंह-ठीक है मैं चलता हूँ 

औरत-काम तो बता देते भैया 

रामसिंह- परेशान मत होइये

औरत- ठीक है भैया-

रामसिंह ने यथास्थित चौकी प्रभारी महोदय को बता दी उसकी माली हालत एव स्वाभिमानी होने के बारे में भी बताया रामसिंह-साहब वह गरीब है ईमानदार है

अनुज सिंह-इस पर विचार करता हूँ।

    अब अनुज विचार करने लगे अगर मैं इसे दण्डित करता बिना सोचे समझे इस लड़के के साथ मारपीट और गाली गलौज करता तब इसके मन में निश्चित ही पुलिस विभाग की छवि खराब हो जाती फिर ये सदा सदा के लिए खाकी को अन्याय से सनी हुई वर्दी समझता और मैं तो निश्चित ही इसकी नजर में हैबान सिद्ध हो जाता

फिर ये सच में शायद एक शातिर अपराधी बन जाता हम सभी पुलिसकर्मियों की ड्यूटी है कि पहली नजर में ही किसी के साथ अशोभनीय भाषा एव अवांछित शक्ति के प्रयोग से बचना चाहिए अगर सम्भव हो तो तहकीकात एव वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश एक अदद कोशिश जरूर करनी चाहिए अन्यथा पुलिस और जनता की बीच खाई पटना असम्भव बनी रहेगी आज मैं अपनी नजर में दोषी होने से बच गया अनुज सोचने लगे।


अनुज सिंह-ए लड़के गाड़ी में बैठ

लड़का-साहब माफ कर दो आगे कभी चोरी नहीं करूंगा

अनुज सिंह-सुना नहीं गाड़ी में बैठिए

लड़का-मुझे हवालात में मत डालना

अनुज सिंह-सुना नहीं गाड़ी में बैठो

लड़का-साहब माफ कर दो वह गिड़गिड़ाने लगा

अनुज- मैं तुझ पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा हूँ.

लड़का गाड़ी में बैठ गया

अनुज-तू सच बोल रहा था मैनें पता करा लिया है

अब अनुजसिंह लड़के को उस सेठ के पास ले गए जहां वह काम करता था,

दरबान-कहिए साहब किस काम से आना हुआ

अनुज सिंह-अपने सेठ को बुलाइये

दरबान-ठीक है साहब अभी बुलाता हूँ

अनुज सिंह-जल्दी बुलाइये

सेठ-नमस्कार दरोगा जी

अनुज सिंह-नमस्ते

सेठ-बताइए महोदय किस लिए आना हुआ

क्या सेवा करूँ

अनुज-फिलहाल तो सेवा आपकी की जाएगी सेठ जी आप एक बच्चे से घर में काम करबाते है और जब वह पैसे मांगता है तब आप आधा अधूरा हिसाब कर उसे मारते पीटते हैं।

सेठ-साहब मेरे यहाँ तो कोई लड़का काम ही नहीं करता सेठ ने झूठ बोलकर मुक्त होना चाहा।

अनुज सिंह-राम सिंह लड़के को लाइये

रामसिंह- जी साहब

राम सिंह लड़के को सेठ के सामने लाया और कहा क्या ये लड़का तेरे यहां काम नहीं करता था।

सेठ-हाँ ये तो करता था

अनुज सिंह-सेठ को थाने ले चलो वहीं खातिरदारी करेगें

सेठ-अरे साहब माफ कीजिये

अनुज-इस लड़के का सारा हिसाब कीजिये और वादा कीजिये आइंदा किसी मजबूर असहाय गरीब का शोषण नहीं करेंगे

सेठ-जी साहब मैं वादा करता हूँ

चौकी इंचार्ज महोदय ने सेठ से उसके सारे पैसे दिलवाए और सेठ पर विधिसम्मत कार्यवाही भी संगत धाराओं में की ताकि अन्य लोगों को सन्देश जाए कि कभी किसी मजबूर की मजबूरी का फायदा उठाना कितना नुकसानदेह हो सकता है।

        अब अनुज ने अपनी जेब से स्कूल फीस एव किताबों के पैसे लड़के को अलग से और दिए और कहा ये मेरी तरफ से पुरस्कार है तुम्हारी सच्चाई का खूब पढ़ना और दिखा दो दुनियां को अभी जान बहुत है मेरे इरादों में…..

और हां सुनो बेटे मैं तुम्हारे साथ हमेशा खड़ा रहूंगा अब तुम अकेले नही हो। 


लड़के की आंखों में आंसू छलक आए अरे साहब ये क्या 

अनुज बोले- सुनो तुम एक ईमानदार हो और ये तुम्हारी ईमानदारी का इनाम दे रहा हूँ आज तुम्हारी वजह से मैं एक कलंक से बच गया मैंने अपने अबतक के सेवाकाल में शायद ही कभी कोई ऐसा कार्य किया हो जिसका मुझे पछतावा हो।

लड़का एकटक देखता रहा और पैर छूते हुए बोला सर मैं आपका सदैव ऋणी रहूंगा अब मैं भी पुलिस में जाऊंगा चाहे कितनी ही मेहनत क्यों ना करनी पड़ी


 अनुज बोले- हम पुलिसकर्मियों का कर्तव्य बनता है कि किसी भी बेगुनाह को सजा ना मिल सके.लेकिन पुलिस भी बहुत बार बड़ी बड़ी गलतियों कर देती है जिसका खामियाजा समस्त समाज को उठाना पड़ जाता है।

  अब अनुज सिंह बोले मैंने तुम्हारे घर पर अपना सिपाही भेजकर सच्चाई पता करा ली थी कि तुम सच कह रहे हो या झूठ पता करने के लिए!

लड़का-साहब आपने मेरी माँ को ये सब तो नहीं बताया 

अनुज बोले- नहीं उन्हें कुछ नहीं बताया,

लड़का-आप मेरे आदर्श हो साहब

अनुज-नहीं मेरा मानना है प्रत्येक व्यक्ति समाज के लिए आदर्श स्थापित कर सकता है बशर्ते उसमें इच्छाशक्ति होनी चाहिए

लड़का-मैं आपको वचन देता हूँ कुछ नया करने के बाद ही आपने भेंट करूंगा सर

अनुज-अब तुम घर जाओ माँ प्रतीक्षा कर रही होगी

लड़के ने दुबारा अनुज सिंह के पैर छुए अनुज ने उसे गले लगा लिया आज वर्दी में शायद उसे भगवान मिल गए हों।

लड़का आंखों में आंसू भरकर अपने गंतव्य को चला गया

अनुज सिंह चौकी लौट आये

 

    अनुजसिंह ने भी उससे वादा किया मैं तुमसे समय समय पर मिलता रहूंगा और तुम्हारा जब जी करे मुझसे मिल सकते हो।वह लड़का कालांतर मे कठोर परिश्रम और अपनी कुशाग्र मेधा से उच्च शिक्षा ग्रहण कर भारतीय पुलिस सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण करता हुआ पुलिस अधिकारी बन गया उसकी पहली तैनाती अनुज सिंह के गृह जनपद में बतौर स.पुलिस अधीक्षक के रूप में हुई अब वह काफी गोरा चिट्ठा और छरहरे वदन का खूबसूरत युवक लगने लगा था खाकी की चमक उसके ओज को और दीप्त कर रही थी उसे ख्याल था इस वर्दी के पीछे किसी का ऋण है मुझ पर।

     अनुजसिंह अब सेवानिवृत्त हो चुके थे वह अब बूढे हो चले थे इकलौता बेटा असमय काल की गोद मे चला गया था घर पर बूढ़ी पत्नी और एकलौती बेटी साथ रह रही थी पेंशन से गुजारा चल रहा था वह रोजाना रामचरितमानस का पाठ करते और सुबह सुबह अखबार पढ़ना ना भूलते । 

    एक दिन अनुजसिंह के द्वार पर एक चमचमाती सफेद जिप्सी रुकी उस समय अनुजसिंह बाहर धूप खा रहे थे

अनुजसिंह- चौकीदार देखो बाहर कौन है,

चौकीदार-जी बाबू जी

चौकीदार ने दरवाजा खोला और देखा उसके समक्ष एक आईपीएस अधिकारी की वर्दी मे गोरा चिट्ठा युवक था,

चौकीदार-बाबू जी एएसपी साहब आये हैं

अनुजसिंह-पूछिये किस कारण आना हुआ

चौकीदार-बताइए साहब किससे मिलना है क्या काम है।

आईपीएस-क्या अनुज साहब का यही घर है।

चौकीदार-जी साहब यही अनुज बाबूजी का घर है वह जो सामने कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे है वही हैं बाबूजी,

आईपीएस-मुझे साहब से मिलना है

चौकीदार-जी साहब मैं बाबूजी को सूचित करता हूँ

आईपीएस-ठीक है

चौकीदार तेज कदमों से अंदर दाखिल हुआ और सारी वार्ता अनुज सिंह को कह सुनाई उन्होंने कहा सम्मान के साथ एएसपी साहब को अंदर लाइये

जी बाबूजी चौकीदार तेज कदमों से वापिस पुलिस अधिकारी के पास आया

और अपने साथ ससम्मान अंदर ले गया

अंदर घुसते ही

पुलिस अफसर अनुज के पैरों पर झुक गया अनुज बोले- कौन हो भाई,

आईपीएस-साहब मैं अखिल

अनुज-कौन अखिल

आईपीएस-साहब याद किये १२साल पुराना बाकया

अनुज सिंह-साहब मैं अखिल कौन अखिल वही अखिल जिसने एक बार अपनी स्कूल फीस और बीमार माँ के इलाज के लिए चोरी की थी और आपने उसे सद्मार्ग दिखाते हुए एक अच्छे नागरिक बनने का वचन लिया था जिसे आपने पुलिस की सच्ची परिभाषा बताई थी और एक युवक को भटकने चोर अपराधी बनने से रोका था उसे अच्छी सीख देते हुए अपनी उच्च योग्यता का प्रदर्शन किया था।

अरे अखिल तुम 

अनुज सिंह का गला भर आया

तुम तो सचमुच अफसर बन गए

तुमने तो अपना वादा निभा दिया

तुमने तो अपनी बात भी पूरी ईमानदारी से पूरी की अरे भाई वाह!

अब अनुजसिंह की आंखे अश्रुपूरित हो चली थीं ये हर्ष के आंसू थे।

अब अखिल और अनुज दोनो की आंखें गीली हो रही थी।

अखिल ने अपने अर्दली को आबाज दी ब्रीफकेश लाना,

जी साहब 

अर्दली- बोला

अखिल ने ब्रीफकेश से खाली चेकबुक स्वहस्ताक्षरित अनुजसिंह के समक्ष रख दी, बाबू जी मेरी आय पर अब तुम्हारा हक है माँ मर गयी है

अब एक मात्र मैं ही हूं,

आप ही मेरे हो सब कुछ ये ऋण आपका है

इसे स्वीकार कीजिये,

अनुज ने उसे गले लगा लिया और चेकबुक अखिल को वापिस करते हुए कहा,

ये सब तुम्हारा है इसके सच्चे हकदार तुम हो मैं तो बूढ़ा हो चला हूँ मुझे धन की कोई आवश्यकता नहीं मुझे अब सहारे की आवश्यकता है।

मुझे बुढ़ापे में लाठी की जरूरत है इसे तुम पूरा करोगे यही मेरी इच्छा है अगर तुम्हें स्वीकार हो तो सदा सदा इस घर को अपना घर मान सकते हो।

अखिल-निःशब्द बावूजी के गले लगा रहा

अब तुम मेरे साथ रहोगे इसी घर में माँ और बहन के साथ अखिल निशब्द होकर पास बैठ गया उसे अपार हर्ष हो रहा था नया परिवार पाकर और अनुज सिंह को अपना बेटा पाकर

अनुज सिंह-निर्मला बाहर आओ शैलजा बाहर आओ देखो बाहर तुम्हारा बेटा आया है और शैलजा का भाई

निर्मला और शैलजा दौड़ती हुई बाहर आई वह अपने समक्ष एक पुलिस अधिकारी को देख ठिठक गईं।अनुज सिंह ने सारा ब्रतान्त अपनी पत्नी और बेटी के समक्ष रखा 

निर्मला ने बेटे को गले लगा लिया और फफक फफक कर रोने लगी

शैलजा को अखिल ने गले लगा लिया

अनुज सिंह और निर्मला बेटे अखिल को घर ले गईं और एक आनन्दोत्सव का आयोजन किया गया

घर मे पुनः खुशहाली लौट आयी

अनुज सिंह को इकलौता बेटा मिल गया और अखिल को एक महान पिता….

शिव शंकर झा"शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२०.०७.२०२१ ०३.५८ pm

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इस लघु उपन्यास को लिखने का मकसद अनुजसिंह जैसे सूझबूझ वाले पुलिस कार्मिकों के गुड़ वर्क को जनता तक ले जाना था ताकि खाकीधारी अधिक समझ एव शालीनता का परिचय देते हुए वस्तुस्थिति को जानने का प्रयास करें ताकि कोई बेगुनाह जुर्म की अंधी दुनिया मे सिर्फ खाकी की गलती की वजह से ना चला जाये

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